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ग्वारममा स्व. बाबूलालजी
भी कन्या की पढ़ाई का भिक माने पर पाप उसे पारा बन मित्र के हीरक जयन्ती उत्सव का २ अप्रैल को भिजवाने का परामर्श देते थे।
मापने उद्घाटन किया। पाप पाल इण्डिया ए मैनिटेरियन लोग मागरा की मापने अपने उदघाटन भाषण में 'जैनमि' का इतिप्रबन्यकारिणी कमेटी के उपसभापति व सदस्य अनेक वर्षों हास सक्षिप्त में प्रस्तुत कर दिया था।
श्रीन सिद्धान्त भवन पारा के २५-१२-१३को अपराधियो की देखभाल कर उन्हें सुमार्ग मे लाने हुए हीरक जयन्ती महोत्सव के प्राप स्वागताध्यक्ष थे। बाली Bengal-after-care Association कमेटी के पाप इस अवसर पर जैन साहित्य एव पुरातत्त्व के सेवकों को साम्य रहे है, इस सस्था के प्रधान सरक्षक भारत के 'सिद्धान्ताचार्य' उपाधि देकर सम्मान दिया गया था, राष्ट्रपति एव बगाल के अनेक मुम्माधिकारी इसके उमकी मून प्रेरणा में प्रापका भी हाथ था। सदस्य रहने थे।
__ पापको जैन पुरातत्व से बहुत रुचि थी। पापका मार मन् ४३ मे भारतीय जैन परिषद् कलकत्ता के पुरातत्त्व विशेषको यथा-डा. बी. मी. छाबग M. मक्रिप मन्त्री चुने गये थे । इम सस्था का मुख्य उद्देश्य जन A. M.02 श्री एच. एल. श्रीवास्तव, पण्डित माषोमाहित्य मोर सस्कृति का प्रचार व प्रमार करना था। स्वरूप यन्म, अशोककुमार भट्टाचार्य श्री शिवराम मूर्ति, इसके नवावधान में मनक विद्वानों के सानाहिक, मामिक श्री टी.एन. रामचन्द्रन पादि से बहन मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध मभामो मे भाषण होते थे, जिन्हें प्रकाशित भी कराते रहे है। ये मन पुरातत्त्व विभाग में उच्च पदो पर पामीन Jan System of Education और Theory of पं। इन मबके जरिये पाप जैन सामग्री प्राप्त करने के Nhn-Absolusion नामक संग्रह प्रकाषित किये गये थे। लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते थे। पापने पुरातत्त्व-प्रेम के
पाप पाल इण्डिया दिगम्बर जैन परिषद् की प्रबन्ध वशीभूत होकर जन पुगतन अवशेषो की बोज के लिए कारिणी ममिति के मदस्य रहे है।
भारत के विभिन्न प्रदेशो की मनेक बार यात्राएं की थी। पाप माल इणिया म्यूजिक काम, कलकत्ता के पापको पुगतत्त्व की अभिरूचि एवं सेवामो के सम्मानार्थ उप-मभापति रहे है।
भारत मग्कार ने पापको मन १९५२ मे पुरातत्व विभाग पाप Indian Association of Mental Hygiene का अवैतनिक Correspondent बनाया था। के १६ मे ७ तक कोपाध्यक्ष रहे है।
पाप पुरातत्त्व सम्बन्धी विषयो पर पनक लेख १९ मे इण्डियन रिसर्च इन्स्टीट्यूट के सदस्य प्रकाणित कगते थे। मापने अपनी विभिन्न यात्रामो में
जैन पुरातत्त्व सम्बन्धी बहुत-सी सामग्री एकत्रित की थी, पाप सन् ५० से ५७ तक प्राकृत टेक्टम् सोमाइटी जिनमें प्राचीन मस्कृति के अनेक सुन्दर-सुन्दर कलापूर्ण के सदस्य रहे है। इस स्था के सरक्षक डा. राजेन दुर्लभ चित्र भी है, जिनमें कुछ स्थानीय बेलगछिया उपवन प्रसादजी थे, उन्होने इम मस्या के लिए बहुत प्रयत्न किये के एक हाल मै सुन्दर ढग से लगाये गये है। प्रापकी थे । इम सस्था का कार्य करते हुए बाबूजी गजेन्द्र बाबू इच्छा थी कि पूरे हाम में मे चित्र नगा दिये जावें वो सम्पर्क मे पाये। इसे पाप कलकत्ता की मारवाडी वर्णनापियो को न मस्कृति के प्राचीन गौरव से परिचित रिलीफ सोसाइटी, पिपरापोल सोमाइटी मादि सर्व-हिन- करावे । किन्तु वह इच्छा पूर्ण नही हो सकी। रुग्ण कारी अनेक संस्थामो के सदस्य रहे है। कलकत्ता दि० शय्या से भी बराबर इसके लिए अपनी प्रेरणा देते जन ममाज की प्राय मभी मस्यामो के महत्वपूर्ण प्रायो- रहने थे। अनी में प्रापका योगदान किसी-न-किमी रूप में अवश्य पापने बगिरि-नयगिरि पर एक भोजपूर्ण पुस्तक रहना पा।
लिखी। मापन काकता जैन मूति-यन्त्र गग्रह भी सन श्री दिगम्बर जैन प्रान्तीम समा बम्बई के मुख्य पत्र १९२३ मे प्रकाशित किया था, तत्पश्चात् जन विविलियो