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१०० : आनन्द प्रवचन : भाग १२
है। इसके अतिरिक्त मांस ठीक तरह से चबाया न जाने के कारण दांत, गले और आँत तथा नाक के रोग पैदा होते हैं; हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। मांस तपेदिक तथा मृत-पशु की अन्य कई बीमारियों से युक्त होता है, जिसके वे सब रोग मांसभोक्ता को लग जाते हैं । जानवरों को मारते समय अत्यधिक भय से उनके शरीर में विष पैदा हो जाता है, जो उस मांस को खाने वालों के शरीर में व्याप्त हो जाता है। शरीर में विजातीय द्रव्य इकट्ठा हो जाने से मधुमेह, रक्तहीनता आदि रोग पैदा हो जाते हैं। मांसाहार शरीर में अत्यधिक ताप और अम्लता उत्पन्न करता है, जिससे मनुष्य सुस्त, आलसी और तमोगुणी हो जाता है, उसकी बौद्धिक प्रखरता समाप्त हो जाती है।
मांसाहार अशुद्ध भोजन है, इससे बना हुआ वीर्य दूषित होता है; जिससे अधिकतर मांसभोजियों की संतानें रोगी, आवेश ग्रस्त और अनैतिक आचरण वाली हो जाती हैं । मांस को पकाने व स्वादिष्ट बनाने के लिए अनेक तरह के मसाले तथा अन्य रासायनिक वस्तुएँ डाली जाती हैं, जो शरीर में कई रोग पैदा कर देती हैं।
शाकाहार में सभी पोषक तत्त्व पाये जाते हैं, जो मांसाहार में नहीं होते। इसलिए शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य की दृष्टि से मांसाहार कथमपि उचित नहीं हो सकता । मांसभोजन बहुत ही अस्वास्थ्यकर है, तथापि मानले कि यह स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हो तो भी मानवता के आधार पर यह उचित नहीं कहा जा सकता । कौन बीमार व्यक्ति आध्यात्मिक स्वास्थ्य की दृष्टि से अपने भाई बहन के समान नर-मादा पशुओं को दुःख देकर तथा मारकर स्वास्थ्य-लाभ करना चाहेगा? किसी प्राणी को मारकर तथा उसका मांस खाकर स्वास्थ्य बढ़ाना क्या मनुष्य को शोभा देता है ?
मांस में स्वाद भी तो नहीं है । फल, मेवा, दूध घी आदि के स्वाद की तुलना में मांस में कुछ भी स्वाद नहीं है । गन्ध तो और भी घिनौनी है। मांस दुष्पाच्य है, महँगा है फिर भी पाशविक स्वादवृत्ति को सन्तुष्ट करने हेतु मांसभोजी प्राणिहत्या करते हैं तथा अपनी बुराइयाँ छिपाने के लिए स्वास्थ्य, शक्ति आदि के लाभ का बहाना करते हैं । वास्तव में मांस में न तो स्वास्थ्य के गुण हैं, और न ही कोई स्वाद । मांसाहार की प्रवृत्ति : आतंकवात का आधार
इतने दुर्गुण होते हुए तथा मांस से भी बलवर्धक एवं स्वादिष्ट पदार्थ संसार मे प्रचुर एवं सस्ते होते हुए भी मांस की ओर लपकना केवल आसुरी वृत्ति को तुष्ट करना है । ऐसे आत्महनन करने वाले लोग अनेक प्रकार के रोगों, दुःखों, आधि-व्याधियों से यहाँ ग्रस्त रहते हैं, और परलोक में भी अपने कुकर्मों का समुचित दण्ड भोगते हैं।
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