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दरिद्र के लिए दान दुष्कर : २११
प्रार्थना की-"भंते ! आपको जो आत्मज्ञान हुआ है, उसे संसार के लोगों को भी सुनाइए, ताकि उनका कल्याण हो।"
महात्मा बुद्ध-"संसार के लोग जब तक आत्म-ज्ञान के पात्र न हों, तब तक मैं इसे किसी को नहीं सुना सकता। आत्म-ज्ञान के अधिकारी की कसौटी है, त्यागभावना-सर्वस्वदान की भावना। यदि एक व्यक्ति भी सर्वस्वदान देने वाला निकल आए तो मैं समझ लूगा, संसार में त्याग एवं सर्वस्वदान की भावना है और वैसी स्थिति में मैं आत्म-ज्ञान अवश्य सुनाऊँगा।"
इस पर अनाथपिण्ड ने कहा-"भंते ! संसार में आपके लिए सर्वस्वदान देने वालों की क्या कमी है ? बहुत-से निकलेंगे।"
महात्मा बुद्ध-"तू तो अनेक की कहता है, एक भी सर्बस्वदानी मिल जाय तो मेरा काम बन जायगा।"
अनाथपिण्ड पात्र लेकर कौशाम्बी आया, सूर्योदय होने का समय था । नगर के लोग बिछौने पर पड़े थे। कुछ लोग उठ चुके थे, कुछ उठ रहे थे। उसी समय अनाथपिण्ड ने आवाज लगाई-'बुद्ध सर्वस्वदान चाहते हैं, कोई सर्वस्वदान देने वाला दाता हो तो वह मुझे दे।"
बुद्ध बहुत प्रसिद्ध थे, उस समय । अनाथपिण्ड भी कौशाम्बी के नागरिकों के परिचित थे । आवाज सुनकर लोग कहने लगे-"अनाथपिण्ड तथागत बुद्ध के लिए आज सबेरे ही सर्वस्वदान लेने के लिए आए हैं, अतः इन्हें खाली नहीं जाने देना चाहिए।" इस प्रकार विचार करके अनेक स्त्री-पुरुष वस्त्र, आभूषण, रत्न आदि लेकर दौड़े और अनाथपिण्ड के पात्र में डालने लगे । लेकिन अनाथपिण्ड उनमें से किसी भी वस्तु को अपने पात्र में नहीं रहने देता था, वह पात्र को औंधा कर देता था जिससे सब चीजें नीचे गिर जाती थीं । अनाथपिण्ड यह कहकर आगे बढ़ जाता कि मुझे सर्वस्वदान चाहिए, ऐसा दान नहीं । लोग नीचे गिरी हुई अपनी-अपनी चीजें उठा लेते और निराश होकर लौट जाते।
अनाथपिण्ड इस तरह सारी नगरी में घूम गया, लेकिन सर्वस्वदानदाता कोई न मिला । चलते-चलते वह नगर से बाहर निकल गया। अनाथपिण्ड ने सोचा-'अब तो जंगल आ गया है, जब नगर में ही कोई सर्वस्वदानी नहीं मिला तो जंगल में कौन मिलेगा !' लेकिन 'बहुरत्ना बसुन्धरा है', शायद कोई सर्वस्वदानी जंगल में भी मिल जाए, इस आशा से जंगल में पहुँचकर आवाज लगाने लगा- "बुद्ध सर्वस्वदान चाहते हैं, कोई देना चाहे तो दे।"
जंगल में एक वृद्धा ने अनाथपिण्ड की यह आवाज सुनी । वह महादरिद्रा थी। उसके न तो कोई घर-बार था, न वस्त्र-पात्र, उसके शरीर पर एक फटा-पुराना लज्जानिवारणार्थ वस्त्र था, वही उसका सर्वस्व था। उसने सोचा-बुद्ध सर्वस्वदान चाहते हैं और मेरा सर्वस्व यही एक वस्त्र है। अपने इस सर्वस्व को देने का दूसरा सुयोग
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