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समर्थ के लिए क्षान्ति दुष्कर : २१५
वास्तव में प्रभुता, पद, अधिकार, योग्यता, क्षमता, राज्यादि की प्राप्ति आदि सब एक या दूसरे प्रकार से शक्तियाँ हैं। इसलिए प्रभु का सामान्य अर्थ हम सामर्थ्यशाली या शक्तिशाली व्यक्ति कर सकते हैं। पृथक्-पृथक् शक्ति से सम्पन्न व्यक्ति को प्रभु कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
शक्ति के साथ नम्रता एवं सहिष्णुता कठिन मनुष्य जब किसी शक्ति, सामर्थ्य, प्रभुता या अधिकारसम्पन्नता प्राप्त कर लेता है, तब उसके साथ ही उसका मद भी उसमें प्रविष्ट हो जाता है । मान लीजिए, किसी के पास धन को शक्ति है, उसके पास पर्याप्त धन है, प्रतिदिन कमाता भी है, उसका व्यवसाय भी अच्छा चलता है, तिजोरी में चाँदी भवानी की छनाछन हो रही है, चारों ओर से नोटों की वर्षा होती है; ऐसे समय में धन की शक्ति से सम्पन्न मनुष्य में एक प्रकार का नशा चढ़ जाता है, जिस कारण वह निर्धनों को, गरीबों और दीनहीनों को कुछ नहीं गिनता। जब भी कोई जरूरतमन्द उसके द्वार पर आकर किसी आवश्यक वस्तु की याचना करता है, तो उसका पारा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है। वह अपने नौकरों, कर्मचारियों आदि को फटकारता है, गालियाँ देता है, ऊटपटाँग बकता है । परन्तु ऐसा क्यों ? कारण है, धन की शक्ति का मद । 'शक्तौ सहनम्' शक्ति होने पर सहन करने का मन्त्र वह मुल जाता है । राजस्थान के महाकवि विहारी की भाषा में
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौरात है, वा पाए बौराय ॥ कनक धतूरे को भी कहते हैं और सोने को भी। परन्तु धतूरे से सोने की मादकता सौ गुनी अधिक हो जाती है । क्यों ? धतूरा तो खाने पर ही नशा चढ़ाता है, हाथ में पकड़ने, या जेब अथवा थैले में रखने से नशा नहीं चढ़ाता, परन्तु सोना तो हाथ में आते ही नशा चढ़ा देता है, व्यक्ति सोने के नशे में मदोन्मत्त होकर दूसरों की जरा-सी अपने से प्रतिकूल बात-चाहे वह यथार्थ हो, हित की हो, सहन नहीं करता; फौरन आपे से बाहर हो जाता है ।
इसी प्रकार किसी के पास सत्ता की शक्ति है, वह भी अपने आपको बहुत बड़ा आदमी समझ लेता है, उसका दिमाग भी बात-बात में गर्म हो जाता है, सत्ता मद का नशा भी बड़ा भयंकर होता है । सत्ताधारी के कान सच्ची बातें सुनने को तैयार नहीं होते । प्रायः सत्ताधारी अपने पद और अधिकार के बल पर दूसरों को नीचे गिराते, दीन-हीनों को ठुकराते और अपने हितैषी को भी अपनी बात मनवाने के लिए उतावले हो जाते हैं । वे सत्ता के मद में विवेक, अदब, मान-मर्यादा, विनय, बड़ों के प्रति नम्रता आदि सब कुछ भूल जाते हैं ।
जिस समय यहां मुगल शासन था तब मुगल बादशाह भी सत्ता के नशे में निरीह प्रजा पर, उनकी बहन-बेटियों पर तरह-तरह से जुल्म करने लगे थे । बलात्
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