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समर्थ के लिए क्षान्ति दुष्कर : २२३
सभा में कोई भी नया कवि आता तो वे उसका प्रेम से स्वागत करते थे। उन्हें पता नहीं था, कि ये दोनों मेरे चचेरे भाई पिता के वैर का बदला लेने आए हैं। उन दोनों ने लोगों से पूछ-ताछ की ये बड़े कवि कौन हैं ? इनके पिता कौन थे ? पता लगा कि हमारे पिताजी को मारने वाले (ताऊ) तो मार गये हैं, पर यह उनका लड़का बड़ा कविरत्न है । बस, इसे चाहे जिस तरह से मार डालना है । वे मारने के उपाय सोचने और खोजने लगे । परन्तु ये कविरत्न तो कभी अकेले नहीं होते, घर जाते और राजसभा में आते सवारी में जाते थे, साथ में सिपाहियों का संगीन पहरा होता था । कैसे मारना ? इसी उधेड़-बुन में पड़ गए दोनों भाई ।
एक पाक्षिक पर्व का पवित्र दिन था, इसलिए कविरत्न ने कहा---'आज मुझे पालकी नहीं चाहिए, मैं अकेला ही पैदल चला जाऊँगा।" सिपाहियों ने घर तक साथ चलने देने का बहुत आग्रह किया, पर कविरत्न ने साफ इन्कार कर दिया। उन दोनों भाइयों ने देखा-आज अच्छा मौका है। यह अकेला ही घर जा रहा है अतः उसके पीछे दोनों लग गये । गली के नुक्कड़ पर उन्हें घेरकर दोनों बोले-"ठहर जा पापी ! हमारे पिताजी को तेरे बाप ने मार डाला, हम उसका बदला लेने आए हैं। अब तुझे जीवित नहीं जाने देंगे।" दोनों भाई तलवार हाथ में लिए उन्हें मारने को तैयार हो गए।
कविरत्न ने उनसे कहा-'भाइयो ! तुम्हारे और मेरे पिताजी की क्या परिस्थिति थी, इसका पता न तो तुम्हें है, न मुझे। हम सब भाई हैं। हमें उस पूर्व के वैर की परम्परा नहीं रखनी है । अगर तुम मुझे मारोगे तो मेरे पुत्र तुम्हारे प्रति वैर रखेंगे । इस प्रकार वैर की परम्परा चलेगी । इसे चलाने की क्या आवश्यकता है ? हम भाई-भाई बनकर प्रेम से रहें। चलो, तुम मेरे घर पर।"
परन्तु वैर का बदला लेने के लिए उद्यत चचेरे भाइयों को ऐसी हित-शिक्षा कहाँ सुहाती? वे तो उलटा कहने लगे-"हमें तुम्हारा उपदेश नहीं सुनना है । तेरा बाप हमारे पिताजी को मारकर शाह बनकर यहाँ आ बसा था, अब तू बड़ा ज्ञानी बनकर हमें उपदेश देने लगा है ? बचने के लिए ये सब रास्ते तू खोज रहा है । पर हम तुझे जीता नहीं जाने देंगे।"
कविरत्न ने उन्हें वैर वसूल करने की बात छोड़ने के लिए बहुत समझाया फिर भी वे टस से मस न हुए । तब कविरत्न ने कहा-"भाइयो! अगर तुम्हें मुझे मारना ही है तो मैं तुम्हें उपाय बताऊँ । इस समय तुम मुझे मारोगे और कोई तुम्हें देख लेगा तो तुम गिरफ्तार कर लिए जाओगे। आज रात को १० बजे इस नगर के बाहर शंकर के मन्दिर में तलवार लेकर आ जाना। मैं भी वहां आकर खड़ा हो जाऊँगा । तुम खुशी से मुझे मार डालना।" परन्तु वे दोनों कहने लगे- "तू यहाँ से भागने की युक्ति सोच रहा है, हमें ठगना चाहता है, पर हम तुझे जीवित जाने नहीं देंगे।"
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