Book Title: Anand Pravachan Part 12
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 354
________________ धर्म ही शरण और गति है : ३२७ मैं एक ऐतिहासिक उदाहरण आपको बता दूँ कि बड़े से बड़ा संकट या प्रलोभन आने पर भी धर्म पर कैसे दृढ़ रहा जा सकता है पाण्डवों के जीवन का एक प्रसंग है । संधिदूत बनकर श्रीकृष्ण पाण्डवों की ओर से दुर्योधन के पास पहुँचे । बहुत समझाया, संधि के लिए; मगर दुराग्रही दुर्योधन ने साफ-साफ कह दिया कि "मैं तो बिना युद्ध के सुई की नोक पर आए, उतनी जमीन भी नहीं दूंगा ।" ऐसी स्थिति में युद्ध अनिवार्य हो गया । पाण्डवगण भी युद्ध की तैयारी करने लगे । कृष्ण वती नदी के तट पर पाण्डवों ने अपना सैन्य शिविर लगाया । सेना एकत्रित करने लगे । बीचों-बीच कृष्ण का तम्बू, उसके आसपास पांचों पाण्डवों का तम्बू और वहीं द्रौपदी का भी डेरा लगा हुआ था । शिविर में सेनापति धृष्टद्युम्न, राजा द्रुपद, विराट्राज आदि के डेरे भी लगे हुए थे । पाण्डव सबकी यथोचित व्यवस्था करने में लगे थे । पाण्डवों ने भी सब राजाओं के पास युद्ध का निमन्त्रण भेजा, जिसमें स्पष्ट लिख दिया - जो अन्याय के प्रतिकार में सहायक बनना चाहें, वह हमारी ओर से युद्ध में सम्मिलित हो । कौरवों ने भी कई राजाओं को आमंत्रण भेजा था । अतः कई राजा पाण्डवों की ओर सम्मिलित हुए, कई कौरवों की ओर । कुण्डिनपुर के राजा भीम के पुत्र रुक्म ने आमंत्रण पाकर सोचा - - ' युद्धका आमंत्रण आया है, इसलिए सम्मिलित होना चाहिए । युधिष्ठिर का पक्ष बलवान है और न्याय भी उसी ओर है, अतः युधिष्ठिर के पक्ष में ही युद्ध करना ठीक है । लेकिन बहन ( रुक्मिणी) के विवाह के समय कृष्ण ने मेरा जो अपमान किया था, वह काँटे की तरह चुभ रहा है । इस युद्ध में उस अपमान का बदला लेना चाहिए । परन्तु सुना है, कृष्ण स्वयं युद्ध नहीं करेंगे । ऐसी स्थिति में मैं उनसे बदला कैसे ले सकता हूँ । उनके मित्र ( पाण्डवों) का अपमान करके मैं उस अपमान की भरपाई कर लूंगा ।' यों विचार कर अपनी विशाल सेना लेकर रुक्म सीधा पाण्डवों के शिविर में पहुँचा । युधिष्ठिर ने उसका स्वागत किया । रुक्म ने पूछा - " आप सब आनन्द में हैं न ?" --- युधिष्ठिर - " वैसे तो आनन्द ही है, आपके आगमन से विशेष आनन्द हुआ ।" रुक्म - "दुर्योधन का अत्याचार और आपका सौजन्य जगत् में प्रसिद्ध हो चुका है । ऐसा होते हुए भी मैं आपका आमन्त्रण पाकर भी समय पर न आता, तो मेरा क्षत्रियत्व कलंकित होता ।" युधिष्ठिर - " आपके विचार उच्च हैं । आपका हमारे प्रति प्रेम है, इसी कारण आप आए हैं ।" रुक्म - " मैं क्षात्रधर्म का पालन करने आया हूँ । क्षत्रियों का धर्म न्याय की रक्षा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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