Book Title: Anand Pravachan Part 12
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 367
________________ ३४० :आनन्द प्रवचन : भाग १२ ऊँचे वृक्ष पर चढ़कर आसपास देखने लगा। कुछ ही दूर पर एक छोटा-सा सरोवर दिखाई दिया। उतावले कदमों से वह शीघ्र सरोवर की ओर चल पड़ा । हृदय में पंचपरमेष्ठी का स्मरण, वचन में नमस्कार मंत्र का रटन और पांवों से गमन हो रहा था। इधर पेड़ के नीचे अकेली बैठी चन्दनबाला पर एक शिकारी की दृष्टि पड़ी। सुकोमल कन्या को देखकर वह मुग्ध और आसक्त हो गया। वह चन्दनबाला के पास आकर कहने लगा- "सुन्दरी ! मेरे लिए भगवान ने तुम्हें भेजा है, अतः और कोई विचार किये बिना मेरी दूसरी पत्नी बनकर सुखपूर्वक जीवन बिताओ। तेरे जैसी सुकोमल पुष्पकली की यहाँ वन में अकेली मुरझाना उचित नहीं है।" शिकारी के अप्रत्याशित और धर्मविहीन वचन सुनकर चन्दनबाला चौंकी, शिकारी को समक्ष देखकर वह बोली- "देखो भाई ! सती और सन्त को सताने से कुल, धर्म और वंश का समूल नाश हो जाता है। नहीं मानते हो तो देखलो, रावण, कौरव और कंस का हाल । उनका नामोनिशान भी न रहा । और भी सुनो, मेरे भाई ! कृपण धन को, सिंह मूछ को तथा सती अपना हाथ-ये तीनों जीते-जी दूसरे के हाथ में अपनी ये चीजें नहीं सौंपते।" परन्तु दुष्ट और दुराचारी को यह शिक्षा कहाँ सुहाती ! सशस्त्र और वासनापिपासु शिकारी ने चन्दनबाला को भी एक सामान्य शिकार समझा । परन्तु 'निर्बल के बल राम' इस कहावत के अनुसार शील के प्रभाव से अनायास ही गर्जता हुआ एक भयंकर सिंह वहाँ आ पहुँचा और पंजे की एक झपट मारकर उस दुष्ट को यमलोक पहुँचा दिया। इसी दौरान चन्दनबाला का भाई भी बर्तन में पानी लेकर आ पहुँचा । चन्दनबाला ने पानी पीया। इतने में दोनों के धर्म के प्रभाव से एक सज्जन राजा वहाँ आ गया। राजा ने दोनों बालकों को देखा। उनमें शील और धर्म का तेज देखकर वह अत्यन्त प्रभावित हुआ। राजा ने दोनों बालकों से कहा- “जो चाहिए, सो माँग लो। मैं तुम्हें वचन देता हूँ।" उत्तर में दोनों धर्मनिष्ठ बालकों ने कहा- "राजन् ! अगर आप हम पर प्रसन्न हुए हों तो हम दोनों को जैनधर्म की भागवती दीक्षा दिला दें। हमारे पापकर्म के उदय से हम पर दुःख के पहाड़ टूट पड़े थे, लेकिन धर्म के प्रताप से हमारी रक्षा हुई । हमें मनुष्य-जन्म आदि सब कुछ मिला, आप जैसे पालक पिता मिले । इसलिए अब हम अपना समस्त जीवन धर्म की सेवा में लगाना चाहते हैं।" राजा ने कहा- "ठीक है, तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी।" दोनों की इच्छानुसार राजा ने पता लगवाया कि साधु-साध्वी किस नगर में विराजमान हैं । फिर दोनों (भाई-बहन) को साथ लेकर उस नगर में पहुंचे। तत्पश्चात् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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