Book Title: Anand Pravachan Part 12
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 366
________________ धर्म-सेवन से सर्वतोमुखी सुख-प्राप्ति : ३३६ हुए कहा-“देख, तू सोच तो सही, तुझे ऐसी अच्छी नौकरानी मुफ्त में मिली है, चन्द्रभान भी दुकान का बहुत-सा कार्य करके मुझे आराम पहुंचाता है। अत: तुझे अपने स्वार्थ की खातिर भी शान्त रहना चाहिए।" यों समझाने पर कुछ दिन तो चाची शान्त रही, किन्तु फिर अपनी पुराने चाल से चलने लगी। वह दोनों बालकों के बारे में चाचा के कान में जहर उगलने लगी। एक दिन चन्दनबाला के हाथ से घी की हंडिया छूटकर गिर पड़ी। घी जमीन पर गिर गया। इस पर चाची का रौद्ररूप देखकर चाचा भी ठंडे पड़ गये । चाची ने आज स्पष्ट सुना दिया- “या तो इस घर में ये दोनों छोकरे नहीं, या मैं नहीं।" चाचा के समझाने पर भी वह टस से मस न हुई। चाचा को भी आखिर उस चण्डी के आगे झुकना पड़ा। दोनों बालकों ने चाचा-चाची से बहुत विनयपूर्वक प्रार्थना की, परन्तु चाचा ने एक न मानी और तुरन्त भाई के दोनों बालकों को घर से बाहर निकाल दिया। सेठ के किसी भी मित्र या सम्बन्धीजन ने इन्हें आश्रय न दिया। पापकर्म का उदय होता है, तब सभी पासे उलटे पड़ते हैं। नीतिकार कहते हैं वृक्ष क्षीणफलं त्यजन्ति विहगाः शुष्कं सरः सारसाः। निद्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गणिका भ्रष्टं नृपं मत्रिणः॥ पुष्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुपाः दग्धं वनान्तं मृगाः। सर्वः कार्यवशात् जनोऽभिरमते, तत् कस्य को वल्लभः ? "फलहीन होते ही वृक्ष को पक्षिगण तुरन्त छोड़ देते हैं, शुष्क सरोवर को सारस छोड़ देते हैं, धनहीन पुरुष को वेश्या शीघ्र छोड़ देती है, जिस राजा के हाथ से राज्य चला गया हो, उसे मंत्रिगण छोड़ देते हैं, नीरस और बासी पुष्पों को भौंरे छोड़ देते हैं, जले हुए वनप्रान्त को हिरण आदि पशु छोड़ देते हैं। सभी लोग मतलब से किसी पर प्रेम करते हैं, ऐसे स्वार्थी संसार में कौन किसका प्रिय है ?" निष्कर्ष यह है कि स्वार्थवश संसार में एक दूसरे को लोग चाहते हैं । स्वार्थ सिद्ध होते ही कोई किसी को नहीं पूछता। . यों विचार करते-करते 'भाई-बहन चाचा के यहां से निकलकर आगे बढ़े। कहाँ जाएं, क्या करें? यही समस्या थी। परिचित-अपरिचित साधनसम्पन्न धनिक मिलते हैं, पर कौन इन निर्धन भाई-बहन को पूछता? दोनों ने अपने ननिहाल जाने का विचार किया। चलते-चलते वे रास्ता भूल गये और एक जंगल का मार्ग पकड़ कर चलने लगे। दोनों को भूख-प्यास सता रही थी। बहन का कंठ सूख गया घा, वह बोली- "भाई ! अब तो पानी के बिना मेरे से एक कदम भी नहीं चला जाता । चाहे जहाँ से थोड़ा सा पानी ले आओ तो मैं आगे चल सकती हूँ।" ___ स्नेही भाई ने चन्दनबाला को एक पेड़ की छाया में बिठाया और स्वयं एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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