Book Title: Anand Pravachan Part 12
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 370
________________ धर्म-सेवन से सर्वतोमुखी सुख-प्राप्ति : ३४३ "उत्तम धर्म का श्रवण प्राप्त होना निश्चय ही कठिन है।" "धर्म-श्रवण करके उस पर श्रद्धा करना और भी कठिन है।" "धर्म में श्रद्धा हो जाने पर भी उसे काया के द्वारा स्पर्श (आचरण) करना पिछले कार्यों से भी दुष्कर है।" एक धर्मश्रद्धालु बुढ़िया थी । नगर में जो भी साधु-साध्वी पधारते, वह उनके दर्शन करने तथा उपदेश सुनने स्वयं भी जाती और पड़ोस की बहनों को भी प्रेरणा देकर ले जाती । वह स्वयं धर्मध्यान एवं धर्मक्रिया करती थी, दूसरी स्त्रियों को भी प्रेरणा करती थी। बहनों में धर्म-भावना फैलाती, उन्हें धर्म में दृढ़ करती थी। बुढ़िया के एक ही लड़का था। पति के गुजरने के बाद उसने स्वयं पाल-पोस कर बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, उसकी शादी की । लड़के की शादी हुए लगभग १२ वर्ष हो गये, लेकिन उसके कोई भी सन्तान नहीं हुई। एक दिन बुढ़िया को बैठे-बैठे विचार आया-'मैं इतने वर्षों से धर्मध्यान करती आरही हूँ, दूसरों को भी धर्म-पालन के लिए प्रेरणा करती हूँ; मगर मेरे अभी तक एक पोता भी न हुआ । क्या धर्म मुझे एक पोता (लड़के के लड़का) भी नहीं दे सकता ? सुनती हूँ धर्म से इहलौकिक-पारलौकिक सुखसाधन तो मिलते ही हैं, मोक्षसुख तक प्राप्त हो सकता है । परन्तु जो धर्म मुझे साधारण-सा सुख-साधन नहीं दे सकता, वह मोक्षसुख क्या देगा? इतने वर्ष मेरे पुत्र को शादी किये हो गये मगर धर्म ने उसको एक पुत्र भी न दिया, ऐसे धर्म को रखकर मैं क्या करूं?' इस प्रकार बुढ़िया को धर्म के प्रति श्रद्धा घटने लगी। धीरे-धीरे उसे धर्म के प्रति अरुचि हो गई । अब वह स्वयं भी साधु-साध्वियों के पास नहीं जाती और जो बहनें जाती थीं, उन्हें भी रोकती और बहकाती--'क्या रखा है, साधु-साध्वियों के दर्शन में, धर्मश्रवण में या धर्मध्यान करने में ? मैंने बहुत वर्षों तक धर्मध्यान कर लिया, कुछ भी नहीं है, इसमें । क्यों फिजूल घर के कार्य का नुकसान करती हो? वहाँ कुछ स्वाद होता तो मैं क्यों छोड़ती ?" एक बार एक वृद्ध साधु नगर में पधारे। वे सभी धर्मधोरी बहनों से परिचित थे। उन्होंने जब बुढ़िया को धर्मसभा मे नहीं देखा तो बहनों से पूछा- “एक बुढ़िया जो पहले बहुत धर्मध्यान करती थी, वह कहाँ गई ?" बहनों ने कहा- “महाराजश्री ! बह है तो इसी शहर में, पर आजकल वह मिथ्यात्वी हो गई है । उसे अब धर्म के प्रति श्रद्धा नहीं रही। वह कहीं भी आती जाती नहीं।" वृद्ध मुनिराज ने कहा-"जरा उससे कहना तो सही कि तुम्हारे परिचित साधु आए हैं, व्याख्यान सुनना।" एक महिला ने मुह विचकाकर कहा--"महाराज ! हम तो उससे नहीं कहेंगी। वह हमें ही फटकारने लगती है-'तुम्हीं जाओ, मैंने तो बहुत दर्शन कर लिये, व्याख्यान सुन लिये, कोई मुराद पूरी नहीं हुई। ___ अतः वृद्ध साधु ने कहा-"अच्छा, फिर मैं ही भिक्षा के लिए जाऊँगा, तब बात करूंगा।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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