Book Title: Anand Pravachan Part 12
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 363
________________ ३३६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ " माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न संस्कृतः ।" "वह माता शत्रु है, और वह पिता वैरी है, जिसने बालक को धर्मसंस्कारों से सुसंस्कृत नहीं किया ।" धर्मसंस्कारहीन बालक 'धर्मेण हीना पशुभिः समाना:' इस नीतिवाक्य के अनुसार पशुओं के समान रहेंगे । अतः हमारा कर्तव्य है कि इन बालकों में धर्मसंस्कार भरें । • ऐसा विचार करके सेठ-सेठानी दोनों बालकों में धर्म के संस्कार भरने लगे । आज तो अधिकांश धनिकों की स्थिति यह है कि वे धन-सम्पत्ति, सत्ता और अधिकार मिलने पर उसके नशे में भक्ष्य - अभक्ष्य, प्रेय- अप्रेय आदि का विचार नहीं करते । इस जन्म का सुख देखकर वे परभव का भविष्य भूल जाते हैं, परन्तु याद रखिये, इस भव का भविष्य ( सुखसम्पन्नता) तो पूर्वजन्म में बंधा हुआ है, वही है । अब तो आगामी भविष्य ( सुखसम्पन्नता) के लिए इस जन्म में ही विचार करना है । सेठ-सेठानी बालकों के भविष्य का विचार करते हैं । वे सोचते हैं—अपने बच्चों को नाशवान धन-वैभव, बंगला, कार एवं अन्य सुखोपभोग साधन देने के वजाय, धर्म IT अक्षय, अविनाशी जीवन - पाथेय देना चाहिए जो सदैव चल सके । श्रेष्ठ प अपने पुत्र तथा पुत्री में धर्म- विचारों का बीजारोपण करते हुए कवि का यह संगीत उनके हृदय मन्दिर में गुरौंजा दिया क्यों फिरता प्यारे आवारा, धर्म कर काम आएगा । खूब ही पटका, पाया नरक-सा धर्म ॥ कर तू चहुंगति में भटका, कर्मों ने उलटा गर्भ में लटका, दुःख न चलता कोई भी चारा इस जग में तू अकेला, आया और यह चलता-फिरता मेला, संग चले बता कोई पाप ने तारा ॥ धर्म कर जाए अकेला । पाई न धेला । ॥१॥ ॥२॥ इस प्रकार वे प्रतिदिन दोनों बालकों को विभिन्न पहलुओं से धर्म का माहात्म्य चमत्कार और गौरव बताकर धर्म-संस्कार डालने लगे । तीन चार वर्षों में तो उनमें धर्म संस्कार कूट-कूटकर भर दिये । एक दिन इस कुटुम्ब को दुर्भाग्य ने आ घेरा । स्वस्थ और सशक्त सेठानी का हार्टफेल से देहान्त हो गया । इस वज्रपात के कारण शोक के दिनों में गद्दी तथा गोदमों के बीमे की अवधि पूरी हो गई फिर भी बीमे की अवधि बढ़वाने की बात सेठ एकदम भूल गए । संयोग से बीमे की अवधि पूर्ण होने के चौथे ही दिन अकस्मात् गोदाम में आग लग गई । सारा माल जलकर भस्म हो गया । बीमे की अवधि पूरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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