________________
समर्थ के लिए क्षान्ति दुष्कर : २२६
शत्रु कालसेन को जीवित ही बाँध लाया था। मुनि बन जाने के बाद वह सबके प्रति अभयदानी एवं क्षमाशील होकर विचरण कर रहा था, तभी कालसेन ने उसे देखा तो पूर्ववैर स्मरण करके उस पर टूट पड़ा । यद्यपि सहस्रमल्ल मुनि उसे जीतने में समर्थ थे किन्तु समभावपूर्वक उसका प्रहार सहन किया।
बन्धुओ ! इस प्रकार जो सामर्थ्यशाली है, यद्यपि उसके लिए क्षमा दुष्कर है, तथापि उसे अपने क्षेत्र में क्षमाशील बनना चाहिए । यही महर्षि गौतम का परामर्श है
"पहुस्स खंती""सुदुक्करा।" समर्थ व्यक्ति के लिए क्षमा कठिन है, पर शोभाजनक है।
00
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org