Book Title: Anand Pravachan Part 12
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya
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यौवन में इन्द्रियनिग्रह दुष्कर : २५६
युवक पर भी प्रयोग और प्रयत्न किया जाए तो ये सब क्रूरता, उग्रता आदि दुर्गुण दूर हो सकते हैं । वह सहिष्णु, क्षमाशील, नम्र, एवं मृदु बन सकता है । परन्तु युवावर्ग के लिए यह सुकर बात भी दुष्कर इसलिए हो जाती है, कि वह स्वयं इस प्रकार का प्रयत्न और स्वयं पर लगाम लगाने का प्रयोग नहीं करता । अगर युवक और युवती अपनी इन्द्रियों पर स्वयं स्वेच्छा से नियंत्रण करें तो आसानी से वे अपनी आत्मशक्तियाँ बढ़ाकर संसार में अद्भुत कार्य करके दिखा सकते हैं ।
तरुणावस्था में पंचेन्द्रियनिग्रह से युवक-युवतियों की शक्तियाँ किस प्रकार विकसित हो जाती हैं, तथा उनका गृहस्थाश्रम भी कितना सुखसम्पन्न हो जाता है, इसके लिए एक प्राचीन उदाहरण जैन संस्कृति में प्रचलित है— विजय सेठ और विजया सेठानी का ।
दोनों ने कौमार्य-अवस्था में ही गुरुदेव से एक-एक पक्ष में ब्रह्मचर्य पालन का नियम ले लिया था । संयोगवश दोनों का विवाह सम्पन्न हो गया । सुहागरात का अवसर, शुक्लपक्ष चल रहा था, पति-पत्नी दोनों के मन में आज आनन्द नहीं समा रहा था । विजय सेठ के शुक्ल पक्ष में ब्रह्मचर्य पालन का नियम था । अतः उसने अपनी धर्मपत्नी विजया से कहा - "मेरे शुक्लपक्ष में ब्रह्मचर्य पालन का नियम है, इसलिए इतना धैर्य रखना । संसार के भोगों में इन्द्रियों की शक्ति का अतिव्यय करना उचित नहीं है ।"
पति के वचन सुनकर क्षणभर के लिए विजया के चेहरे पर उदासी छागई । उसने मन अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण करके कहा - "प्राणनाथ ! जैसे अपने गुरुदेव से शुक्लपक्ष में ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा ली है, वैसे ही मैंने कृष्णपक्ष में ब्रह्मचर्य - पालन की प्रतिज्ञा ली है । अतः प्रतिज्ञा भंग करना मेरे लिए मृत्यु से भी बढ़कर दुःखदायी है । मैं आपको कृष्णपक्ष में पत्नी के रूप में भोग सुख नहीं दे सकूंगी | अतः आप चाहें तो दूसरा विवाह कर सकते हैं। अपनी ओर से आपको अनुमति देती हूँ ।"
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कोई आग्रह नहीं
तुम्हें सांसारिक
मैं विजया सेठानी की बात सुनकर विजय सेठ ने उस पर किया या दवाब नहीं डाला कि "तुमने मेरे साथ विवाह किया है तो कर्म करना ही चाहिए ।" आजकल का कोई युवक - आधुनिकता से सम्पन्न पतिहोता तो शायद पत्नी पर दवाब डालता, उसे डांट-फटकार कर या उस पर जोर अजमा कर प्रतिज्ञा भ्रष्ट होने को बाध्य कर देता । आजकल के अधिकांश युवक जवानी के नशे में अपनी शक्तियों का भान भूल जाते हैं । एक पाश्चात्य विचारक रोचीफॉकोल्ड (Rouchefoucould ) जवानी का विश्लेषण करते हुए कहते हैं
भी है ।"
“Youth is a continual intoxication, it is the " तारुण्य सतत रहने वाला एक नशा है, साथ ही
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fever of reason.'
यह कारणों का ज्वर
पत्नी भी फैशन और विलास के प्रवाह में बहकर अपनी प्रतिज्ञा से भ्रष्ट हो जाती है, विषय-भोगी पति के द्वारा बाध्य करने पर ।
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