Book Title: Anand Pravachan Part 12
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 311
________________ २८४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ पर कोई भी रोक न लगाने वाला धर्म मुक्ति का दावेदार कैसे हो सकता है ? जैनधर्मं ने तो स्पष्ट कहा है "छन्दनि रोहेण उवेइ मोक्खं ' "मोक्ष अगर कोई प्राप्त कर सकता है तो वह स्वच्छन्दता का निरोध करके ही प्राप्त कर सकता है ।" जिनोपदिष्ट धर्म को विशेषताएं जिनोपदिष्ट धर्म की अनेक विशेषताएँ है । यहाँ मैं बहुत हो संक्षेप में कुछ प्रमुख विशेषताओं के सम्बन्ध में आपको बताऊँगा । अनेकान्त - जिनोपदिष्ट धर्म की सबसे बड़ी विशेषता अनेकान्तवाद, सापेक्षवाद या स्याद्वाद है । जैनधर्म की परिभाषा एक आचार्य ने इस प्रकार की है स्यादवादो विद्यते यस्मिन् पक्षपातो न विद्यते । नास्त्यन्यस्य पीड़नं किंचित्, जैनधर्मः स उच्यते ॥ " जिसमें स्याद्वाद है, पक्षपात बिलकुल नहीं है, तथा जिसमें किञ्चिन्मात्र भी परपीड़न नहीं है, उसे जैनधर्म कहते हैं ।" अनेकधर्मात्मक वस्तुओं का विविध अपेक्षाओं से कथन करना या मानना स्याद्वाद या अनेकान्तवाद है । जब अनेकान्त जीवन में आ जाता हैं, तो 'जो सच्चा सो मेरा' की वृत्ति हो जाती है । वहाँ पक्षपात का तो नाम ही कैसे रह सकता है ? जिस धर्म में किसी भी जीव के प्रति पक्षपात न हो, वहाँ किसी भी जीव को पीड़ा कैसे दी जा सकती है ? और फिर अनेकान्त दृष्टि से सभी धर्मों, आध्यात्मिक साधनाओं, तत्त्वों, शास्त्रों, लौकिक विधियों, जातियों आदि का समन्वय हो जाता है । जैसा कि मैं पहले कह चुका हूं, कि जैनधर्म में अनेकान्तवाद के माध्यम से किस प्रकार दर्शनों, धर्मप्रवर्तकों और धर्मों का समन्वय किया गया है । धर्माचरण : सबके लिए - जिनोपदिष्ट धर्म किसी एक जाति, वर्ण, देश, प्रान्त या राष्ट्रविशेष द्वारा ही आचरणीय हो, ऐसा नहीं है । जैनधर्म की दृष्टि से किसी भी देश, वेष, वर्ण, जाति, धर्म-सम्प्रदाय, प्रान्त, राष्ट्र, भाषा, संस्कृति या धर्म - संस्कारों आदि का कोई भी व्यक्ति इसका आराधन या पालन कर सकता है । कोई भी व्यक्ति अपनी भूमिका के अनुसार इसे अपना सकता है। जैनधर्म में विभिन्न कोटि के व्यक्तियों की भूमिका के अनुसार धर्माचरण का प्रतिपादन किया गया है । मुख्यतया यहाँ तीन प्रकार की भूमिका के अनुरूप धर्माचरण की तीन कोटियाँ बताई गई हैं— ( १ ) मार्गानुसारी ( २ ) गृहस्थ श्रावक या श्रमणोपासक और (३) महाव्रती साधु । गृहस्थ श्रावक की भी कई श्र ेणियाँ बताई हैं, इसी प्रकार कई श्रेणियाँ बताई गई हैं । महाव्रती साधुओं की भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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