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धर्म : जीवन का त्राता : ३१३
ओट में अथवा सफेदपोश बनकर अनीति-अन्याय से, बिना श्रम के धन कमाने की प्रवृत्ति चला रखी है। कई लोग तो जान-बूझकर सम्पन्न होते हुए भी लड़की के पिता को दबा-सताकर अधिकाधिक धन दहेज या मिलनी के नाम पर प्राप्त करके धर्म को तिलांजलि दे रहे हैं। इसीलिए कवि हार्दिक वेदनापूर्वक कहता है
भारत से धर्म देख लो अब तो रवाना हो गया। किस को सुनाएँ भाइयो ! बहरा जमाना होगया ॥ ध्रुव ।। लड़के का बाप पूछता, लड़की के साथ दोगे क्या ? मोटर बिना तो ब्याह का मुश्किल रचाना हो गया ।। भारत से ।। मिलनी का फकत नाम है, माहरों से असली काम है।
काम अमीरों का गजब लूट के खाना हो गया । भारत से""॥
बन्धुओ ! कड़वी बात कह गया हूँ। क्षमा करें। परन्तु आज धर्म की दुर्दशा और धर्म की विदाई देखकर सच्ची बात न कहूं तो मैं अपने धर्म से चूकता हूँ। सचमुच, इस प्रकार की कुप्रथाओं के पोषण से समाज के अधिकांश लोग अपने शुद्ध धर्म को तिलांजलि दे देते हैं; धन की रक्षा करने में वे धर्म की रक्षा को भूल जाते हैं । जब शुद्ध धर्म की रक्षा नहीं होती तो वे लोग दिखावे के लिए कुछ धार्मिक क्रियाएँ कर लेते हैं, कुछ रकम अमुक धार्मिक संस्थाओं को दे देते हैं, धर्मस्थानों में बहुत आते जाते हैं । परन्तु अन्तरंग धर्म को विदाई देकर बाह्य धर्म का प्रदर्शन करने से धर्म की सुरक्षा नहीं होती । धर्म की सुरक्षा किये बिना, जीवन की सुरक्षा कैसे हो सकती है । आप इसे भली-भांति समझें। इसीलिए महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र में कह दिया है
धम्मो य ताणं धर्म ही मानव जीवन का त्राता है।
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