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यौवन में इन्द्रियनिग्रह दुष्कर : २५७ इसका नतीजा जो भी होता है, वह आप जानते ही हैं । युवकों की इन्द्रियाँ भी फिर उच्छृखल होकर विपरीत दिशा में लग जाती हैं।
चार दैत्य : इन्द्रियशक्ति के उच्छृखल होने में कारण युवकों की इन्द्रियाँ प्रबल होती हैं, उनमें कर्तृत्व शक्ति भी अपार होती है, परन्तु उन शक्तियों को उच्छृखल बनाने में चार दैत्य मुख्य रूप से कारण बनते हैं(१) हठ, (२) अहं, (३) क्रोध एवं (४) आवेश । युवकों के मन में जैसे ही विचार उठता है, कि उनका मन इन्द्रियों को शीघ्रातिशीघ्र कार्यान्वित करने के लिए आदेश दे उठता है । प्रायः युवक प्रतिरोधी विचारों को सहन नहीं करता, संशोधन भी नहीं करना चाहता । हठाग्रह पकड़ लेता है। हठ के ही सहोदर अहं, क्रोध और आवेश आदि होते हैं। वह किसी से कुछ सीखने और ग्रहण करने को उत्साहित नहीं होता। जब उसके अहं को चोट पहुँचती है, तो उसमें आवेश और क्रोध उभरता है। इससे उसके साथी एक-एक करके बिखर जाते हैं और वह एकाकीपन महसूस करने लगता है।
ऐसी स्थिति में वह अपनी इन्द्रियों को शराब, गांजा, भाँग, सिगरेट-बीड़ी आदि नशीली चीजों के सेवन या मांस, मछली, अण्डे आदि के सेवन से बहलाता है, निन्दा, चुगली या प्रपंच करने में वाणी को लगाता है, आँखों को सिनेमा, अश्लील चित्र देखने या गन्दे उपन्यास पढ़ने एवं रूप देखने में लगाता है, कानों से भी वैसे ही अश्लील गन्दे, अपशब्द सुनकर दुरुपयोग करता है। इसी प्रकार हाथ-पैर आदि को लड़ाईझगड़ा, तोड़-फोड़, मारकाट या संघर्ष करने में जुटा देता है, कामेन्द्रिय को उत्तेजित करके विभिन्न रूपों में व्यभिचार में उसे संलग्न रखता है।
___मतलब यह है कि इन चार दैत्यों के करण युवक सभी इन्द्रियों को उच्छृखल एवं उद्दण्ड बना देता है। एक बार उच्छृखल बन जाने के बाद फिर उन पर काबू पाना बहुत ही कठिन होता है।
तारुण्य, इन्द्रियों की अजोड़ शक्ति का केन्द्र हां, तो मैं कह रहा था, जवानी में इन्द्रियों की शक्ति चारों ओर से सिमट कर आती है । इन्द्रियों के सर्वांगीण विकास की अवस्था जवानी है। परन्तु इन्द्रियों की शक्ति को धारण और संचित करने के लिए उससे पूर्व उसका संरक्षण एवं सुरक्षा आवश्यक है । परमाणु शक्ति को धारण करने वाला बम- अणुबम कहलाता है, यह इतनी शक्तिशाली धातु का बना होता है, यानी उसका बाहरी आवरण इतनी मजबूत और ठोस धातु से बनाया जाता है कि उसके भीतर अणुविखण्डन की प्रक्रिया सम्पन्न करने वाले यन्त्रों पर बाहरी आघातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यदि इतनी कड़ी और मजबूत धातु का आवरण उस पर न चढ़ाया जाए तो उस बम के किसी भी क्षण विस्फोट होने का खतरा बना रहेगा। इसी प्रकार जिस इन्द्रिय-शक्ति के संचय से चैतन्य-शक्ति बढ़ती है उस शक्ति के धारण एवं संरक्षण के लिए भी प्रयत्न होना चाहिए। अगर युवक चाहता है कि मेरी आत्मिक प्रगति हो, तो उसे अपनी शक्तियों
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