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जीवन अशाश्वत है : २७५
किया है, तो मुझे अवश्य जाना चाहिए । सेठ मुनिश्री के पास गये । उन्हें वन्दना करके कहा-'गुरुदेव ! फरमाइए, मेरे योग्य क्या सेवा है ? मुनिश्री ने कहा- 'सेठ ! यह मेरी एक लकड़ी है, इसे आप अपने घर ले जाएँ, वहाँ रख देना। मैं काफी वृद्ध हो चला हूँ। कब यहाँ से परलोक विदा हो जाऊँ, कुछ पता नहीं है । मेरा जब देहान्त हो जाए तब आपको यह लकड़ी मुझे परलोक में पहुँचानी है । यानि आप जब परलोक में आएँ, तब मेरी यह लकड़ी साथ में लेते आएँ।"
सेठ ने कहा- "गुरुदेव ! यह कैसे सम्भव होगा? परलोक में मैं यह लकड़ी कैसे ले जा सकूगा ?"
___मुनिश्री ने कहा- “सेठ ! इसमें कौन-सी बड़ी बात है ? जब आप अपनी सारी मिल्कियत, हीरा, माणक, मोती आदि सारी सम्पत्ति परलोक में साथ लेकर जाएँगे तो मेरी इस छोटी-सी लकड़ी में क्या भार है ?"
___ सेठ ने कहा- "महाराजश्री ! करोड़ों की सम्पत्ति में से मैं एक कण भी एक पाई भी साथ में नहीं ले जा सकूँगा, मेरे बाप-दादा भी तो यहीं छोड़ गए थे, मुझे भी यहीं छोड़कर जाना होगा ?"
मुनि-"आपके बाप-दादों को सम्पत्ति पर मोह नहीं होगा, इसलिए वे यहीं छोड़ गये होंगे । पर आपको तो सम्पत्ति पर इतना जबर्दस्त मोह-ममत्व है इसलिए आप तो साथ में ले ही जाएँगे।"
सेठ-'अरे भगवन् ! न वे ले गये, न मैं ले जाऊँगा । सब यहीं धरा रह जाएगा। सबको संसार के सारे पदार्थ यहीं छोड़कर जाना होगा । और तो और यह शरीर भी साथ में नहीं जाएगा, न जाएँगे ये कुटुम्बीजन !"
__मुनि-"आप इतना जानते हैं, और यह भी जानते हैं कि जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, कब लुढ़क जाए, तब इतनी उखाड़-पछाड़ धन के लिए क्यों और किसके लिए कर रहे हैं ? इतना सब छल-प्रपंच करके जो करोड़ों की सम्पत्ति इकट्ठी की है, वह किसलिए है ? क्या यह छोटी-सी जिंदगी थोड़े-से साधनों से नहीं चल सकती ? फिर इतने बँधे हुए पापकर्मों का फल भोगना होगा, उसे कौन भोगेगा ? क्या ये पारिवारिक जन इसमें हिस्सा बंटाएँगे? नहीं-नहीं सेठ ! छोटी-सी जिंदगी के लिए क्यों इतनी खटपट कर रहे हो ?"
सेठ पर मुनिश्री के वचनों का बहुतों गम्भीर प्रभाव पड़ा। उनकी आँखों में आँसू छलक उठे, वे कहने लगे- "गुरुदेव ! आज आपने मेरी आँखें खोल दीं। आपको बात बिलकुल सही है। मेरी पत्नी तो मुझे बराबर यही कहती थी, तरन्तु मोह में अन्धा होकर मैंने उसकी एक नहीं सुनता था। मैं इस जीवन की अनित्यता पर कभी विचार नहीं करता, न ही मुझे धर्माचरण की बात सुहाती थी। मैंने अपना जीवन स्याहसफेद करने में -पापकर्म में बर्बाद कर दिया। अब मेरा क्या होगा ? प्रभो ! मैं कैसे इन पापों से छूटूगा ?"
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