Book Title: Anand Pravachan Part 12
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 283
________________ २५६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ और कुरूढ़ियों पर होता है, उसके बाद वृद्ध माता-पिता, समाज और राष्ट्र के बुजुर्ग नेताओं पर होता है । बुजुर्गों एवं नेताओं का असन्तोष है कि युवक अपने निर्माण के लिए कुछ भी यत्न नहीं करते । निर्माण के अभाव में असन्तुष्ट युवक अपनी ऋटियों और दुर्बलताओं को दूसरों पर थोपते हैं। दोनों के मन में प्रादुर्भूत असन्तोष का निवारण ध्वंसात्मक मार्ग छोड़कर सृजनात्मक मार्ग अपनाने से हो सकता है। बुर्ग यह समझ लें कि प्राचीन पीढ़ी से लेकर वर्तमान पीढ़ी तक हजारों वर्षों में धर्म, संस्कृति, रहन-सहन आदि सभी में अनेक परिवर्तन एवं संशोधन हुए हैं, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता। अतः वे स्थितिस्थापकता के पोषक न बनकर उनमें से प्रत्येक क्षेत्र की युगबाह्य, विकासघातक, धर्म-संस्कृतिबाधक परम्पराओं के परिवर्तन एवं संशोधन को स्वीकार कर लें । युवक लोग भी यह समझ लें कि प्रत्येक प्राचीन परम्परा खराब नहीं होती, जो परम्परा शुद्ध धर्म, संस्कृति आदि के अनुकूल हो, उसे चालू रखने में नहीं हिचकिचाना चाहिए। हर नई प्रवृत्ति को भी बिना परीक्षण किये, बिना सोचेसमझे आँखें मूंदकर नहीं अपनाना चाहिए यथार्थता का अंकन न करके नई लहर के प्रवाह में तेजी से नहीं बह जाना चाहिए। दोनों ही अपने-अपने असन्तोष का समाधान सामुहिक रूप से परस्पर मिल-बैठकर कर लें, एक-दूसरे के प्रति आक्षेप, प्रत्याक्षेप न करें। तभी असन्तोष का समाधान होकर सन्तोष एवं शान्ति हो सकती हैं । युवकों की इन्द्रिय-शक्ति सार्थक हो सकती है। उच्छृखलता कितनी यथार्थ, कितनी अयथार्थ ? युवावर्ग की उच्छृखलता की ओर बुजुर्गों का रोष बार-बार भड़कता है ? परन्तु यह तो मानना पड़ेगा कि युवकवर्ग में जोश होता है, कुछ करने की तमन्ना होती है। जब उसे अनुभव नहीं होता और बुजुर्ग लोग उसके प्रति पूर्वाग्रहग्रस्त होकर उसे किसी प्रकार का अनुभव एवं मार्गदर्शन नहीं देते, तब वे उनकी ओर से निराश होकर अपने ही बुद्धिबल पर भरोसा रखकर चलता है । उसमें कई दफा कार्य गड़बड़ा भी जाता है । कई दफा युवावर्ग किसी कार्य में आँख मूंदकर उत्साहपूर्वक कूद पड़ता है, विरोधीवर्ग उसे असफल करने के लिए पहाड़-सा तनकर खड़ा हो जाता है। यदि युवक असफल हो गए तो उन्हें उच्छृखल या उद्दण्ड कहकर बदनाम किया जाता है । युवकों में कितनी उच्छृखलता है, और कितनी स्वतन्त्रता की भावना है ? इसका यथार्थ निर्णय कोई तटस्थ एवं न्यायशील निष्पक्ष व्यक्ति करे तभी सत्य का पता लग सकता है। और यदि युवक सफल हो जाते हैं तो भी उनके कार्यों को कोई महत्व नहीं दिया जाता, न उनकी प्रशंसा करके उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है । सच पूछा जाए तो युवकों में उच्छृखलता आने का मुख्य कारण उनके प्रति बुजुर्गों या अभिभावकों का गलत दृष्टिकोण है । उनकी योग्यता, शक्ति, क्षमता एवं सक्रियता की अवगणना की जाती है, उनकी सक्रियता को पुनः-पुनः नकारा जाता है, उनके प्रति आत्मीयतापूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता तभी वह उच्छृखल बनते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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