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समर्थ के लिए क्षान्ति दुष्कर : २१६
वादिता, कृतज्ञता, सौम्यता, प्रशान्ति, उदारता और करुणा आदि सद्गुण सहसा उद्भूत नहीं होते । परन्तु याद रखिए पूजनीय और महान् व्यक्ति वे ही होते हैं, जो क्रोध, उत्तेजना, आवेश, मदान्धता आदि के समय तुरन्त अपने पर नियंत्रण कर लेते हैं । सुप्रसिद्ध नीतिकार भर्तृहरि ने बड़े सुन्दर ढंग से कहा है
नम्रत्वेनोन्नमन्तः परगुणकथनैः स्वान् गुणान् ख्यापयन्तः । स्वार्थान् सम्पादयन्तो विततप्रियतरारम्भयत्नाः परार्थे ॥ क्षान्त्यैवाक्ष पक्षाक्षरमुखरमुखान् दुर्मुखान् दूषयन्तः । सन्तः साश्चर्यचर्या जगति बहुमताः कस्य नाभ्यर्चनीयाः ||
अर्थात् — जो नम्रता से ऊँचे होते हैं, पराये ( गुणियों के ) गुण कहकर अपने गुणों की प्रसिद्धि सहज में कर लेते हैं, दत्तचित्त होकर परोपकार के विस्तृत प्रियतर कार्य में यत्न करते हुए वे अपने हित भी सम्पादन कर लेते हैं । अपने पर आक्ष ेप करने के लिए कठोर शब्द का उपयोग करने वाले दुर्मुख लोगों को वे अपनी क्षमा से ही दूषित कर देते हैं । ऐसे विचित्र चर्यावाले बहुजनमान्य सज्जनगण संसार में किसके पूजनीय नहीं होते ?
परन्तु आज संसार में प्राय: रजोगुण का प्रादुर्भाव अधिक होने से लोग थोड़ासा किसी ने कुछ कहा-सुना तो आपे से बाहर हो जाते हैं, क्रुद्ध होकर क्षमा-सहिष्णुता आदि का परित्याग कर देते हैं । थोड़ा-बहुत समर्थ होते ही लोग सर्वप्रथम विनय एवं नम्रता का परित्याग कर देते हैं । विद्या का वैभव पाकर शिक्षित लोग विनीत होना तो दूर रहा, प्रायः अपने गुरुजनों का अपमान करने अपना गौरव समझते हैं । छोटामोटा पद पाकर ऐंठने लगते हैं और रोब दिखाने के लिए बेचैन हो उठते हैं । बहुत-से लोग दूसरों की पगड़ी उछालने में ही अपनी तारीफ समझते हैं । दुर्विनीतता को लोग शूरवीरता और विनम्रता या सहनशीलता को कायरता मानते हैं ।
में
परन्तु याद रखिये समर्थ की क्षमा का जितना प्रभाव दूसरों पर पड़ता है, उतना कठोरता, दुर्विनीतता या क्रोध का नहीं होता । इसीलिए महाभारत में क्षमा की शक्ति को क्रोधादि की शक्ति से अनेक गुना बढ़कर बताया है
क्षमा ब्रह्म, क्षमा सत्यं, क्षमा भूतं च भावि च । क्षमा तपः क्षमा शौचं क्षमयेदं धृतं जगत् ॥ क्षमा ब्रह्म है, क्षमा सत्य है, क्षमा भूत और भविष्यत् है । पवित्रता - शुद्धि है | क्षमा ने ही यह जगत् धारण कर रखा है, कभी का प्रलय, अराजकता, आपाधापी एवं संघर्ष फैल जाता, मार-काट मच जाती । दुनिया तबाह हो जाती । जो जरा भी सहन नहीं कर पाता, वह जगत् को कुछ नहीं
क्षमा तप है, क्षमा अन्यथा, संसार में
दे पाता ।
प्राकृतिक पदार्थों को देखिये, वे कितनी क्षमा-सहिष्णुता रखकर जगत् को
१. नीतिशतक, श्लोक ६०
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