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वेश्या-संग से कुल का नाश | १३५ पापिणी प्रीति करे धन कारण, धूर्तपणो करी लोक रिझावे । खावत मदिरा मांस अपावन, गावत राग विषै ललचावे । द्रव्य हटे तो फटे क्षण अंतर, महानिर्लज्ज कुजाति कहावे। लीन भये धिक् है धिक् है, केत तिलोक सो जन्म गमावे ॥४५॥ वेश्यागमन के बुरे नतीजों का कच्चा चिट्ठा एक उदाहरण द्वारा लीजिए
आज वाणिज्यग्राम नगर में बड़ी चहल-पहल थी। हाथी, घोड़े और सशस्त्र योद्धाओं का बड़ा भारी झुण्ड नगर के बीचोंबीच चल रहा था। उस झुड के बीच में एक बन्धनों से जकड़ा हुआ पुरुष था, जिसके नाक, कान काटे हुए हैं और वध्य मण्डनों से मण्डित था। उसके कंठ में कनेर के फूलों की माला पड़ी थी। कई सिपाही उसी का मांस काट-काटकर उसे खिला रहे थे, कई उस पर कंकड़ फेंक रहे थे। अनेक नरनारी उसे घेरे हुए चल रहे थे । राजपुरुष हर चौक और बाजार में घोषणा कर रहे थे-जो कोई उज्झितकुमार की तरह अपराध करेगा, उसे इसी तरह का दण्ड मिलेगा। गणधर श्री गौतम स्वामीजी उसी समय नगर में भिक्षा के लिए आये हुए थे। उन्होंने भी यह घोषणा सुनी तो स्तब्ध रह गये ।
भिक्षाचरी करके वे सीधे भगवान् महावीर की सेवा में पहुँचे और सारा वृत्तान्त कह सुनाया। भगवान् से उन्होंने यह भी पूछा--भगवन् ! यह व्यक्ति पूर्वजन्म में कौन था ?
प्रभु ने कहा-सुनो ! हस्तिनापुर में सुनन्द राजा राज्य करता था । नगर में एक बड़ा गोमंडल था, बहुत-सी गायें, बैल, भैंसे, वृषभ (सांड) आदि सबको चारा-पानी मिलता था, सभी सुख से रहते थे। नगर में भीम नामक एक कूटग्राह था। उसकी पत्नी का नाम था उत्पला। उत्पला जब गर्भवती हुई और गर्भ तीन मास का हआ, तभी उसे ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ कि वे स्त्रियाँ धन्य हैं, जो गायों और बैलों के आँख, नाक, कान, जीभ, ओठ, गलकम्बल, कंधे आदि को आग में भूनकर उस मांस के शूले बनाकर मद्य आदि के साथ सेवन करती हैं, यदि ऐसे पदार्थ हों तो मैं भी खाऊँ । ऐसे दोहद के कारण वह बहुत दुर्बल होती जा रही थी, भीम कूटग्राह ने जब उससे इस दोहद के सम्बन्ध में जाना तो बोला-"तू चिन्ता न कर, मैं इस दोहद को पूर्ण कराऊँगा।" ।
एक रात को भीम अपने घर से निकल सीधा गोमण्डल में घुसकर किसी गाय, बैल आदि के आँख, कान, नाक आदि काट-काटकर ले आया और विधिवत् उस मांस के शूले बनाकर खिलाये। दोहद पूर्ण हुआ। नौवें महीने पुत्र हुआ। जन्मते ही जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसका यह आरटन सुनकर नगर की गायें, बछड़े, बैल आदि सब भयभीत होकर चारों ओर भागने लगे। इस कारण माता-पिता ने उसका नाम 'गोत्रास' रखा । क्रमशः वह बड़ा हुआ। इसी बीच उसके पिता का देहान्त हो गया। सुनन्द राजा ने पिता के स्थान पर गोत्रास को कूटग्राह रूप में नियुक्त किया। वह जिसे भी जहाँ हीनाचारी देखता पकड़कर दण्डित करता । परन्तु प्रतिदिन
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