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१३४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
प्रवासी व्यवसायियों, सैनिकों या पर्यटकों आदि की कामपिपासा शान्त करने के लिए ऐसी घृणित-पतित स्त्रियों की फौज तैयार करनी पड़े, जो निर्लज्ज और कठोर होकर व्यभिचार करने और अपना शरीर बेचने को विवश हो जाए तथा समाज की नजरों में स्वयं घृणित, निन्दित एवं अपमानित होकर जीए; यह किसी भी समाज और राष्ट्र के लिए कलंक की बात है। ऐसे तथाकथित लोगों की कामवासना शान्त करने की समस्या का हल वेश्याओं को मुहैया करना तो कथमपि संगत नहीं है। इसके लिए सामाजिक वातावरण इस प्रकार का बनाया जाए कि प्रवासी लोगों, सैनिकों या पर्यटकों को वेश्या जैसी भ्रष्ट नारियों या कुलीन गृहिणियों की ओर झाँकने का मौका ही न आए।
इन सब लोगों के मनोरंजन के लिए धार्मिक भजनों, सांस्कृतिक, सात्विक, सुसंस्कारप्रेरक कार्यक्रम रखे जाएँ। अगर मनुष्यों की मनोवृत्ति अच्छे संस्कारों से युक्त हो, पर-स्त्री को माता-बहन या पुत्री समझने की वृत्ति सुदृढ़ हो तथा आसपास का वातावरण सात्त्विक रखा जाए तो कोई कारण नहीं कि प्रवासियों आदि को इधर-उधर इन शरीर बेचने वाली नारियों की ओर ताकना पड़े। क्या घर में वर्षों तक बहन-भाई या माता-पुत्र साथ-साथ संयम से नहीं रहते हैं ? इसका कारण हैभारतीय संस्कृति के पवित्र संस्कार, सात्त्विक वातावरण एवं पर-स्त्री के प्रति माता और भगिनी की भावना । वेश्याओं का पारिपाश्विक वायुमण्डल
वेश्याएं स्वयं भी भ्रष्ट और पतित होती हैं, उनका पारिपाश्विक वायुमण्डल भी कम गन्दा नहीं होता। वेश्या जहाँ रहती है, उसके आसपास शराबखाना भी चलता है। वेश्या के यहाँ आने वाले ग्राहक प्रायः पियक्कड़ होते हैं, वे या तो मद्य पीकर आते हैं, या वहाँ आकर पीते हैं। इसके अतिरिक्त वहाँ गुडों का भी साम्राज्य रहता है। गुडे प्रायः किसी की इज्जत बिगाड़ने, लूट-खसोट करने तथा फुसला-बहकाकर भोली-भाली लड़कियों को वेश्याओं के यहाँ लाने का काम किया करते है । बम्बई जैसे बड़े शहरों में वेश्यालयों के आसपास पुलिस वाले भी खड़े रहते हैं । वे आगन्तुक ग्राहक को धमकाकर रुपये ऐंठ लेते हैं । इसके अतिरिक्त वेश्या के दलाल, विटु या विदूषक, भांड़ तथा अन्य लोग भी रहते हैं । कई बार चोर-डाकू भी आ जाते हैं।
मांसाहार और शराब के बिना गणिका एक दिन भी नहीं रह सकती। इसलिए गणिका के पास आने वालों पर इस गंदे वायुमण्डल का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। कितना ही पवित्र व स्वच्छ व्यक्ति क्यों न हो, काजल की कोठरी में घुसने पर काला दाग लगे बिना नहीं रहता, वैसे ही कितना ही पवित्र कुल-शील वाला मनुष्य क्यों न हो, वेश्या के यहां कुछ न कुछ दाग लगे बिना नहीं रहता। इसीलिए त्रिलोक काव्य संग्रह में स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा है
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