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१६२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
को वह कैसे अच्छी कह सकता है ? कैसे धर्म या पुण्य कह सकता है ? बल्कि चोरी को हिंसा से भी बढ़कर पाप माना गया है। आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में हिंसा से भी चोरी को बढ़कर दुःखकर बताते हुए कहा हैएकस्यैकक्षणं दुःखं मार्यमाणस्य सपुत्रपौत्रस्य पुनर्यावज्जीवं हृते -- मारे जाने वाले जीव को अकेले को सिर्फ एक क्षण के लिए दुःख होता है, परन्तु जिसका धन हरण कर लिया जाता है, उसे और उसके पुत्र-पौत्रों को जीवन भर के लिए दुःख होता है ।
धने ॥
स्पष्ट है कि चोरी भयंकर पाप है, मनुष्य को उत्तरोत्तर पतन की ओर ले जाती है । जिसे एक बार चोरी का चस्का लग जाता है, जो चोरी किये हुए पराये धन पर तागड़धिन्ना करना सीख जाता है, जिसे पर धन के उपभोग में सुख मिलता है, वह उत्तरोत्तर चोरी ही चोरी करता चला जाता है, न्याय-नीतिपूर्वक पुरुषार्थ से, व्यवसाय से या आजीविका से अथवा नौकरी करके कमाना उसे सुहाता ही नहीं । भारतीय नीतिशास्त्रज्ञों ने तो पराये धन पर गुलछर्रे उड़ाने की अपेक्षा भिक्षा माँगना अच्छा बताते हुए कहा है
वरं भिक्षाशित्वं न च परधनास्वादनसुखम् ।
- भिक्षा माँगकर खाना अच्छा है, लेकिन परधन ( चुराये हुए) के स्वाद का सुख अच्छा नहीं ।
पड़े, चोरी किये बिना
।
व्यसन वह होता है,
परन्तु चोरी की लत एक बार जिसे लग जाती है, फिर उसे चाहे जितना दुःख, क्लेश, मानसिक चिन्ता, भय, उद्व ेग, संकट आदि उठाना चैन नहीं पड़ता । इसीलिए चोरी को कुव्यसन कहा गया है जो एक बार सेवन करने पर छोड़ा नहीं जाता। जब तक वश चलता है, जब तक जीवन में कोई बड़ा आघात नहीं लगता या कोई प्रबल वैराग्योत्पादक प्रेरणा नहीं मिलती, तब तक वह चीज छोड़ी नहीं जाती । किसी भी पाप या बुराई का जब जीवन में बार-बार पुनरावर्तन होता जाता है, तब वह पाप भयंकर बन जाता है, वह व्यसन कुव्यसन बन जाता है; वह व्यसनी भी उस पाप को करने में पक्का बन जाता है । किसी के जरा-सा समझाने, यहाँ तक कि त्यागी - महात्माओं के बार-बार उपदेश देने पर भी वह उस भयंकर पाप या कुव्यसन को प्रायः नहीं छोड़ता । कदाचित् देखादेखी, शर्माशर्मी या आवेश में आकर छोड़ भी देता है, तब भी मौका पाकर अपने समान दुर्व्यसनी को देखकर फिर उसका मन उस कुव्यसन के लिए ढीला पड़ जाता है । इसी कारण चोरी को कुव्यसन भी कहा जाता है और भयंकर पाप भी ।
हेमू की शादी होने के बाद उसकी पत्नी राधा को का पता तब लगा, जब वह उसके लिए कभी मिठाई लेकर
उसकी चोरी की आदत कभी नई साड़ी
आता,
१. योगशास्त्र
२. भर्तृहरि नीतिशतक ।
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जायते
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