________________
१८० : आनन्द प्रवचन : भाग १२
(७) अश्लील साहित्य का प्रचार, (८) गन्दे नाटक-सिनेमा का वातावरण, (६) एकान्तवास, (१०) सहशिक्षण, सहभ्रमणादि, (११) धार्मिक अन्धविश्वास, (१२) मादक वस्तुओं का सेवन, (१३) बालविवाह, वृद्ध-विवाह और अनमेल विवाह, (१४) अत्यधिक धन, सुख-सुविधा और निरंकुशता । अब हम क्रमशः इन पर विचार करेंगे
१. परस्त्रीगामियों का कुसंसर्ग-परस्त्री में आसक्ति का सर्वप्रथम कारण हैऐसे लोगों की टोली में बैठना, गपशप लड़ाना, उनका संसर्ग करना, जो परस्त्रीगामी हों, पराई स्त्रियों को हमेशा ताकते रहते हों और परस्त्री को फंसाने की कला में उस्ताद हों, जो एक प्रकार से परस्त्रियों की सप्लाई करने के एजेंट हों। बहुधा ऐसे चालाक व्यक्ति अपने वाग्जाल में फँसाकर कुआरे, विधुर, धनिक, वृद्ध, शौकीन एवं दुर्व्यसनी लोगों से पैसा झाड़ लेते हैं और ऐसी दुश्चरित्र या कुलीन स्त्रियों को ला-लाकर प्रस्तुत करते रहते हैं। इससे परस्त्रीगमन का बाजार गर्म हो जाता है। स्वार्थी यार-दोस्त, शराबी, गंजेड़ी-भंगेड़ी एवं दुराचारी लोगों के कुसंग से व्यक्ति को जब एक बार परस्त्रीगमन की आदत पड़ जाती है, या चस्का लग जाता है, तब उसमें वह झूठा आनन्द मनाता है, फिर तो प्रतिदिन ही वह नित-नई सुन्दरी की माँग करता है । इस प्रकार परस्त्रीसेवन मीठा जहर है, जो मनुष्य को इस दुर्व्यसन में फंसाकर मार डालता है।
इसके अतिरिक्त कई बार कामी पुरुष और दुश्चरित्र कामिनियों के बार-बार के सम्पर्क से अथवा मेले-ठेलों में, कारखानों में स्त्री-पुरुषों के साथ-साथ काम करने से प्रायः कई पुरुष परस्त्रीगमन के कुचक्र में फंस जाते हैं।
२. क्षणिक कामावेश-वर्षों तक ब्रह्मचर्य पालन करने के बाद कभी किसी सुन्दरी को देखकर क्षणिक कामावेश में आकर कई साधक व्यभिचार के मार्ग पर चढ़ जाते हैं। एक बार व्यभिचार का मार्ग खुल जाने पर फिर उसे नियंत्रण में करना बहुत कठिन होता है।
एक ब्रह्मचारी साधक था । गाँव के बाहर कुटी बनाकर रहता था। आनेजाने वाले भक्तों को वह भजन सुनाता और उपदेश देता था। गाँव के लोगों का उस पर विश्वास हो गया था। यद्यपि वह ब्रह्मचर्य पालन करता था, किन्तु ब्रह्मचर्य को पचाने के लिए एक बृहद्ध्येय में अपने को संलग्न करने की आवश्यकता थी। वह ध्येय उसके सामने स्पष्ट नहीं था, और न उसने किसी आध्यात्मिक गुरु का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org