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१६८ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
सिफ्त से कर लेना । अब तो ज्यों-ज्यों वह बड़ा होने लगा, उसने इस कला में दक्षता प्राप्त कर ली। अब वह बड़ी सफाई से लोगों का माल उड़ाने लगा।
मनुष्य जिस ओर अपनी बुद्धि लगाता है उसी ओर उसकी बुद्धि दौड़ने लग जाती है । माधो जब चुराई हुई वस्तुएँ ला-लाकर माँ को सौंपता तब माँ बहुत खुश होती। वह कहती-"शाबाश बेटा! तू ठीक कर रही है। समाज ने तथा जगत ने हमारी परवाह नहीं की तो हम क्यों न लूटे । दुनिया में चोरी कहाँ नहीं हो रही है ? दुनिया में जिधर देखो, उधर चोर ही चोर हैं ? कौन चोर नहीं है ? ये साहूकार कहलाने वाले सब कहाँ दूध के धोये हैं ? व्यापारी, सुनार, दर्जी, राजकर्मचारी आदि सभी चोर हैं। अरे ! जो साधु भगवान् की आज्ञा के विपरीत चलता है, जानबूझकर नियमादि भंग करता है, वह भी एक तरह से चोर है। तू कोई बुरा कार्य नहीं कर रहा है।"
। इस तरह माँ का प्रकट अनुमोदन पाकर माधो का साहस बढ़ गया । अब उसके चौर्य-कार्य में प्रतिदिन वृद्धि होने लगी। वह बहुमूल्य वस्तुओं की चोरी करने लगा। वह अब इतनी सफाई से चोरी करता था कि किसी को कुछ भी शंका नहीं होती थी। अब उसके रहन-सहन का स्तर ऊँचा होने लगा। वह अब बढ़िया कपड़े पहनता, अच्छी वस्तुएँ खरीदता। अपना निजी मकान भी उसने बना लिया। इससे लोगों को सन्देह होने लगा कि यह कोई व्यवसाय तो करता ही नहीं है फिर इतना धन कहाँ से आया ? सम्भव है, कुछ तस्कर व्यापार करता हो। लोगों ने आगे कुछ ध्यान नहीं दिया। राज्य में चोरी की बारदातें बढ़ने लगीं। आए दिन किसी न किसी की चोरी की शिकायत थाने में दर्ज होती, पर चोर पकड़ में नहीं आता था। लोगों का शक माधो पर हुआ, परन्तु सबूत के अभाव में कोई कुछ नहीं कर सका। अब लोग उस पर नजर रखने लगे । माधो और ज्यादा सावधान हो गया। व्यक्ति चाहे जितना सावधान रहे, कभी न कभी तो उसके पापों का भंडाफोड़ हो ही जाता है। एक बार माधो ने राजमहल में चोरी की। चोरी का माल उसके पास बरामद हो गया । वह गिरफ्तार कर लिया गया । पुष्ट प्रमाणों से उसका अपराध भी साबित हो गया। उसकी पिछली चोरियाँ भी प्रकट हो गई । जेल की यातनाओं को न सह सकने के कारण माधो ने अपने सब अपराध स्वीकार कर लिये। उसे इन सब अपराधों के बदले मृत्युदण्ड सुनाया गया। फांसी देने का हुक्म हुआ।
जिस समय उसे फांसी पर लटकाने लिए ले जाया जा रहा था, उस समय बड़ी भारी भीड़ उसके पीछे चल रही थी। फांसी दी जा रही थी, तब भी काफी भीड़ खड़ी थी। भीड़ में खड़ी उसकी माँ भी आंसू बहा रही थी। माधो को फांसी पर चढ़ाने से पूर्व उसको अन्तिम इच्छा पूछी गई तो उसने कहा-"मुझे अपनी मां से मिलना है।" अतः उसकी माँ को उसके पास लाया गया । वह फाँसी के तख्ते के नीचे झुका । माँ समझी कि वह मुझे गुप्त धन के बारे में बतलायेगा। वह कुछ ऊँची होकर माधो के मुह के पास तक अपना कान ले गई । फलतः माधो ने उसका
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