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मांस में आसक्ति से दया का नाश : ६९
मांस बिष्ठा (अमेध्य) के समान गंदा है, छोटे-बड़े कीड़ों (कृमियों) से भरा है, दुर्गन्धियुक्त, बीभत्स है, तथा पैर से छूने योग्य भी नहीं होता, फिर भला वह (मांस) खाने योग्य कैसे हो सकता है । इसीलिए श्री अमृतकाव्य संग्रह में मांसाहार को त्याज्य बताया हैमांस ही के काज जीव जंगम विनासे नीच,
रस वश होय नेक दया न धरत है। कृमिकूलराशि कृति नाम रूप-रस-गंध,
परम अशुचि छिये शुद्धता हरत है॥ माखी भिनकारे उत देखत ही आवे घिन,
__अंध अकुलीन नर ताको आचरत है। कहे अमीरिख दुःखमूल लखी त्यागि देहु,
आमिष आहारी मरी नरक परत है ॥८॥ जो लोग मांस नहीं खाते या मांस खाना प्रारम्भ करते हैं, वे देखने एवं सूघने में अप्रिय मांस को देखना भी नहीं चाहते, उन्हें देखते ही वमन हो जाता है । एक तरफ कच्चा मांस पड़ा हो और दूसरी ओर फलों का टोकरा, तब मनुष्य स्वाभाविक रूप से फलों की ओर आकर्षित होगा; क्योंकि मनुष्य सौन्दर्य प्रिय है। मांस के प्रति स्वाभाविक रूप से उसके हृदय में घृणा और अरुचि होगी। अपने कमरे को वह फल-फूलपत्तियों से ही सजाएगा, मृत-पशुओं की हड्डियों, आंतों, टांगों या नरमुंडों से नहीं । सभ्य देशों में मांस के लिए पशुवध एकान्त में घिरे स्थान में किया जाता है, दूकानें भी अलग होती हैं, मांस को भी दूकान के द्वार पर पर्दा लगाकर रखा जाता है । मृतपशु का छिन्न एवं कच्चा मांस देखने से भी घृणा हो जाती है। मांसाहारी होते हुए यह सब मनुष्य की सौन्दर्य रुचि का परिचायक है ।
मन्दिर, मस्जिद आदि पवित्र धर्मस्थानों में मांसाहार करने वाले लोग मांस का एक कतरा भी सहन नहीं करते । इतनी घृणित, दुर्गन्धयुक्त, गन्दी, बदबूदार चीज को सौन्दर्यप्रिय मनुष्य अपना आहार कैसे बना सका, यही आश्चर्य है।
. मांसाहार में न स्वास्थ्य है न स्वाद मांसाहार से स्वस्थ रहने की बात दिवास्वप्न जैसी है। मांसाहार से शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य तक बिगड़ता है। शरीरविज्ञान-विशेषज्ञों का कहना है कि शरीर को शक्ति और स्फूर्ति उसी खाद्य से मिलती है, जिसे पाचनसंस्थान ठीक से पचा लेता है । मांस का ७५ प्रतिशत भाग गन्दा एवं हानिकारक पानी होता है; जो शरीर को दूषित करता है । मांस गरिष्ठ पदार्थ होने से देर से ही नहीं पचता अपितु इसका कुछ भाग बिना पचा ही रह जाता है, जो आँतों में चिपककर सड़ने लगता है । जिससे गैस, संग्रहणी, कब्ज, गठिया, पेचिश, कंठमाला आदि भयानक रोग हो जाते हैं। कैंसर व नासूर का रोग भी इंग्लैण्ड में ८५ प्रतिशत तक बढ़ता जा रहा
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