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१३० : आनन्द प्रवचन : भाग १२
को मशीनगन से सरेआम बाजार में भून डाला गया। गली-गली में खून के फव्वारे छूटते थे। यह सब रक्तपात हुआ था, सिर्फ वेश्यावर्ग के साथ संसर्ग की खुली छूट के कारण । फिर कैसे कहा जा सकता है कि वेश्यावर्ग के होने से सामाजिक, कौटुम्बिक और राष्ट्रीय कुल-मर्यादाएं सुरक्षित रहेंगी ? यही कारण है कि महर्षि गौतम ने पहले से ही दीर्घदर्शितापूर्ण विचार करके चेतावनी दे दी कि वेश्या-संग से कुटुम्ब, समाज, जाति और राष्ट्र के कुल का सर्वनाश निश्चित है।
जिस प्रकार एक परिवार का कुल होता है, उसी प्रकार जाति, समाज और राष्ट्र का भी कुल होता है । जहाँ वेश्यावृत्ति चलती है, या जिस कुटुम्ब, जाति, समाज या राष्ट्रकुल के लोग वेश्याव्य मिचार में प्रवृत्त हो जाते हैं, उस कुटुम्ब, जाति, समाज या राष्ट्र के कुल में से उत्तम संस्कारों, पवित्र धर्ममर्यादाओं एवं निर्मल सदाचरणों का सफाया हो जाता है । भले ही उस कुटुम्ब, जाति, समाज या राष्ट्र के कुलीन लोग जिंदा रहते हों, श्वास लेते हों, कदाचित् धन भी कमाते हों, पर वे पवित्र संस्कारधन से, उत्तम धर्म से, निर्मल सदाचरण से बिलकुल शून्य हो जाते हैं।
फ्रांस की करुण कहानी सुनकर क्या आप विश्वास नहीं करेंगे ? और हजारों वर्षों पहले की रावण की व्यभिचारी वृत्ति का नतीजा तो इतिहास का पन्ना बोलकर कह रहा है-रावण के कुल का सर्वनाश ।
स्पार्टा के इतिहास की मुह बोलती घटनाएँ कह रही हैं कि जब तक वहाँ वेश्याओं के उन्मुक्त बाजार लगे रहे, व्यभिचार का खुलेआम सौदा होता रहा, तब तक सारा स्पार्टा, यहाँ तक कि यूनान भी मद्यपान, ऐय्याशी, विलासिता, आलस्य एवं बेकारी में फँसा रहा । न वहाँ सामाजिक जीवन शुद्ध रहा और न ही आर्थिक जीवन ! सर्वत्र रिश्वत, घूस, छल, बेईमानी और झूठ-फरेब का बाजार गर्म था। इस ओर स्पार्टा के प्रसिद्ध सम्राट् लाइगरकस का ध्यान गया। उसने इस दुर्व्यवस्था, अशान्ति और अराजकता को बदलने के लिए सर्वप्रथम सभी प्रकार की वेश्यावृत्ति और निरंकुश व्यभिचार प्रवृत्ति को रोका। उसने सरकारी फरमान जारी कर दिया कि कोई भी युवक-युवती स्वतन्त्रता से विवाह नहीं कर सकेंगे । उसके लिए सरकार की आज्ञा लेनी जरूरी होगी। सरकार भी उन्हीं युवक-युवतियों को विवाह से लिए आज्ञा देगी, जो स्वस्थ, बलिष्ठ एवं योग्य वय के होंगे। विवाहित स्त्री-पुरुष भी स्वच्छन्दतापूर्वक एक जगह नहीं सो सकेंगे । स्पार्टा सरकार ने यह व्यवस्था कर दी कि प्रत्येक घर में स्त्रियाँ सब एकत्र होकर भीतर सोएँ, पुरुष सब एकत्र होकर बाहर । वे सिर्फ ऋतुकाल में ही एकत्र हों । इसका परिणाम यह हुआ कि स्पार्टा में वेश्यावृत्ति या वेश्यासक्ति अथवा स्वच्छन्द व्यभिचार प्रवृत्ति बिलकुल न रही ।
यह था, परिवारगत, समाजगत एवं राष्ट्रगत कुल को शुद्ध, संस्कारी एवं स्वच्छ रखने का उपाय ! वेश्यावर्ग को बढ़ावा देने से तो इन कुलों में से किसी में भी शुद्धि नहीं रहेगी। फ्रांस की तरह ये सब कुल स्वच्छन्द वेश्या-व्यभिचार या स्वर
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