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११४ : :आनन्द प्रवचन : भाग १२
इस्लामधर्म में तो शराब का सख्त निषेध है । हजरत मुहम्मद की शिक्षा थी—"मदिरापान और जुआ दोनों पाप हैं । इसलिए जो कुरान के वचनों पर विश्वास रखते हैं, उन्हें दोनों चीजों से बचना चाहिए।"
एक बार हजरत मुहम्मद धर्म-प्रचार के लिए कहीं जा रहे थे । रास्ते में उन्होंने कई मनुष्यों को लहूलुहान और अस्त-व्यस्त दशा में निर्वस्त्र पड़े देखा । पूछने पर पता चला कि इन सब ने शराब पी ली थी, जिस कारण नशे में धुत होकर आपस में खूब लड़े और लहूलुहान होकर बेभान दशा में गिर पड़े।
तब से हजरत मुहम्मद ने दृढ़ निश्चय करके फरमान निकाला कि 'इस्लाम में शराब पीना सख्त मना है।'
वैदिकधर्म में तो मद्यपान सर्वथा वर्जित है । वैदिकधर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ मनुस्मृति (११/६३) में इसका स्पष्ट निषेध है
सुरा वै मलमन्नानां पाप्मानां मूलमुच्यते ।
तस्माद् ब्राह्मणराजन्यौ वैश्यश्च न सुरां पिबेत् ॥ -सुरा (मदिरा) अन्न का मैल (खाद-पद्यार्थों की सड़ान) ही तो है । यह पापों का मूल कहलाता है। इसलिए ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को शराब नहीं पीनी चाहिए।
और जैनधर्म तो मदिरा का सख्त विरोधी है हो । जैनधर्म की श्रावक बनने से पहले शर्त है-सप्त कुव्यसन का त्याग करो । सप्त कुव्यसन में तीसरा व्यसन मदिरा है । अतः जैनधर्म में तो मद्यपान सर्वथा निषिद्ध है।
इसी प्रकार विश्व के सभी विचारकों, महापुरुषों, साधु, संन्यासियों, कवियों और साहित्यकारों ने, सभी प्रजाहितैषी राजाओं ने मद्यपान को सर्वथा निन्दनीय, अपयशकर, अहितकर, घातक एवं निषिद्ध बताया है। मद्यपान से यश का विनाश : क्यों और कैसे?
जगत् में यश के नाश और अपयश के कई कारण होते हैं। उनमें से मुख्य कारण ये हो सकते हैं
(१) पतित और पापी बनकर जीना।
(२) शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक दृष्टि से जान-बूझकर अयोग्य, रुग्ण, पागल बनकर जीना।
(३) धर्मशास्त्रों द्वारा निन्द्य और निषिद्ध, दोषोत्पादक एवं आत्मविकासघातक वस्तु का सेवन करना।
(४) परिवार, समाज, धर्म, राज्य, राष्ट्र: या संस्कृति की मर्यादाओं या श्रेष्ठ
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