Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] शिष्यते- निराक्रियते। जीवा० ३८८१ शुष्कगोमयः- नन्दी० १५१ शिष्णपयितुं- आसेवनाशिक्षाग्रहणप्रदानतः। व्यव. २१५ | शुष्कुलीकर्ण- अनन्तद्वीपविशेषः। जीवा० १४४| शीतं- प्रासुकम्। दशवै. २०६। शीता-वैशयकृत् स्तम्भन- | शूर- भटः। भग०४६३। स्वभावः। स्था० २६। शूल- आयुद्धविशेषः। ज्ञाता० १३८१ शूलः। सम० १२६) शीतरुपा-योनिभेदः। आचा. २४। शूलपाणि- अस्थिकग्रामे यक्षः। स्था० ५०१| शीतला-दाहस्फोटकात्मको रोगविशेषः। उत्त० ३५८। शृगालत्वविहारी- दीनः। आचा० २५४। शीतलिका- व्याधिविशेषः। व्यव० १९२। शृगालभक्षित- भक्तविषयं प्रयोजनं सम्यक् न करोति शीता- महानदीविशेषः। प्रश्न. ९६। शीता-नीलपर्वते (यः)। व्यव० १६३ आ। चतुर्थकूटम्। स्था०७२ शृङ्ग- वृतम्। निशी० ६२। शीताकार- भोगः, क्षेत्रपरिमाणोद्भवो वा। आय०४९९। शृङ्गाटक-समूर्छिमतरुजीवः। आचा० ५७ शृङ्गाटकःशीतीभूत- निर्वृत्तः। आचा० २५८१ त्रयस्रसंस्थाने दृष्टान्तः। प्रज्ञा० ११| शीतोदा- निषधपर्वते सप्तमकूटम्। स्था०७२ शगारमति- गर्भाधानपरिसाटरूपमलदवारविवरणे शीतोदामहा-नदीविशेषः। प्रज्ञा० ९६ सिन्धुरा-जपत्नी। पिण्ड० १४५ शीतोदाद्वीप-द्वीपविशेषः। जम्बू. ३०९। शृङ्गाङ्गि- युयुत्सया योधयोर्वल्गनम्। जम्बू० १३९। शीतोदाप्रपातकुण्ड- कुण्डविशेषः। जम्बू० ३०९। शेखरक- आपीडः, आमेलकः। जीवा० ३६१। शेखरकःशीतोष्परुपा-योनिभेदः। आचा० २४१ आपीडः। प्रज्ञा० ९६। शेखरकः-शिरोवेष्टनम्। स्था. शीर्षद्वारिका- कल्पेन शिरः स्थगनरुपा। बृह. १२५आ। ३०४। शीर्षप्रहेलिका- गणनास्थानविशेषः। आचा० ८९। शेषवत्-त्रिविधानुमाने द्वितीयमनुमानम्। भग० २२२ शीला- गुणसमृद्धनृपपत्नी। पिण्ड०४७ शैक्षकपरिपालना- यावन्नोपस्थाप्यते तावन्न भिक्षां शुक-कीरः। जीवा. १८८1 हिंडापयितव्यः। बृह. ६४ अ। शक्ति-भाजनविधिविशेषः। जीवा० २६६। शैली- रूढिः। नन्दी. १५७ शुक्तिक- द्वीन्द्रियजीवविशेषः। प्रज्ञा० २३। शैवाल- बादरनिगोदविशेषः। प्रज्ञा० ७८1 शुक्तिसंपुट- मुक्ताधारप्टम। प्रश्न. १५२।। शौभन- मध्यस्थः कथः। प्रश्न. ११४| शुक्लपाक्षिकः- किञ्चिदूनपुद्गलपरावर्धिमात्रसंसारको | श्यामाक-बीजविशेषः। आचा० २८५४ जीवः। प्रज्ञा० ११७ अंशना-देशतो भगः। प्रश्न. १३८५ शुक्ष्मक्रियाऽप्रतिपाति- शुक्लध्यानस्य तृतीयो भेदः। श्रम- दौर्बल्यम्। आचा० ३८०१ प्रज्ञा० १०९ श्रव्यशब्दार्थ- मधुरम्। अनुयो० १३३। शुचिविधा- मन्त्रशौचम्। स्था० ३४१५ श्रस्तरः- सस्तरणम्। उत्त० ३८० शुण्ठो- पर्वगभेदः। आचा० ५७। श्राद्ध-पितृक्रिया। जीवा० २८१। शुण्डामकरा- मत्सविशेषः। सम० १३५१ श्राद्धधर्म-सम्यक्त्वमूलानि दवादशव्रतानि। बृह. १८८1 शुद्धयोग- निर्दोषव्यापारः। उत्त० ६५७। श्रावक- व्रतवान्। आचा० २८१। शुद्धोञ्छ- उत्सर्गपदम्। बृह. २५० आ०| श्रावकढङ्ककुम्भकार- सुदर्शनायाः-स्थिरकारकः श्राद्धः। शुल्क-करः। आव० ४९९। विशे०९३६। शुल्कपालः- सामच्छेदिकानां प्रतिबोधकः श्रावकविशेषः। श्रावकदुहिता- विद्वज्जुगुप्सायाम्दाहरणम्। प्रज्ञा०६१। स्था०४१२ श्रावस्ती- कुणालजनपदे नगरी। ज्ञाता० १२५ शुल्व-ताम्रम्। प्रश्न. १५२। श्री- हिमववर्षधरे षष्ठकुटः। स्था०७१। शुषिर- शङ्खवेण्वादौ। आचा० ४१२। | श्रीकान्ता- उदितोदयस्य राज्ञी। नन्दी. १६६। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित "आगम-सागर-कोषः" [५]

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 169