Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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giving; so it was describable. Amidst that garden in the middle of north-eastern direction, there was a sanctuary (temple) of a Yaksa (deity) named Purnabhadra. In the city Campå at that period, a great king named Koņika ruled, who was a very brave and great warrior. He was unconquerable like the great mountain Himavanta and saviour of his nation (the territory of which he was ruler).
विवेचन
• यहां पर 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' इस वाक्य में काल और समय का भिन्न अर्थ में प्रयोग हुआ है । 'काल' से अभिप्राय है-काल चक्र का अवसर्पिणी कालखंड और उसका चतुर्थ आरा, तथा 'समय' से अभिप्राय है-जिस समय का यह वर्णन किया जा रहा है अर्थात् जब भगवान महावीर एवं गणधर सुधर्मा आदि विद्यमान/उपस्थित थे । इस प्रकार यहाँ 'काल'' एवं 'समय'' के अर्थ में भेद किया गया है ।
.चम्पानगरी भारत की सुन्दरतम नगरियों में एक थी। इसकी सुन्दरता और शोभा का वर्णन औपपातिक सूत्र में विस्तारपूर्वक मिलता है । यह अंग देश की राजधानी थी । पन्तु राजा श्रेणिक की मृत्यु (ईस्वीपूर्व लगभग ५४४) के पश्चात् महाराज कोणिक ने, राजगृह को छोड़कर चम्पानगरी को अपनी राजधानी बना लिया । निरयावलिका सूत्र में इस घटना का वर्णन इस प्रकार है
मगधपति राजा श्रेणिक बहुत वृद्ध हो चुके थे । उनके पुत्रों में अशोकचन्द्र कोणिक सबसे बड़ा, प्रखर, तेजस्वी और महत्वाकांक्षी था । इसका जन्म नाम अशोकचन्द्र था, परन्तु एक अंगुली खंडित (कूणी) होने से कोणिक नाम प्रसिद्ध हो गया । बौद्ध साहित्य में इसी का “अजातशत्रु'' नाम प्रसिद्ध
राजा श्रेणिक ने अपने दो लघु पुत्रों हल्ल-विहल्ल कुमारों को राज्य की दो अमूल्य श्रेष्ठ वस्तुएं दे दी-देवनामी हार और सिंचानक हाथी । इससे कोणिक का मन जल-भुन गया । फिर राज्य सिंहासन की प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा से प्रेरित होकर उसने अपने अन्य दस भाइयों को साथ मिलाकर षड्यंत्र रचा और राजा श्रेणिक को बन्दी बना लिया । स्वयं मगधाधिपति बन गया और दस अन्य भाइयों को राज्य के छोटे-छोटे भाग बाँट दिये ।
राज्याभिषेक कराकर तथा राज-चिन्हों से अलंकृत होकर कोणिक अपनी पूज्य माता चेलना के
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अन्तकृद्दशा सूत्र : प्रथम वर्ग
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