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लिए मुनि जम्बूविजयजी के प्रति अपन कृतज्ञता व्यक्त करता है। आचारांग का यह संस्करण श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से सन् 1977 में प्रकाशित हुआ है।
आगम के प्रकाण्ड विद्वान् महोपाध्याय श्री विनयसागरजी ने आचारांग-चयनिका का प्राक्कथन लिखने की स्वीकृति प्रदान की, इसके लिए मैं उनका हृदय से कृतन हूँ। __ मेरे विद्यार्थी डॉ. श्यामराव व्यास, दर्शन-विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर का आभारी हूँ, जिन्होंने इस पुस्तक के हिन्दी अनुवाद एवं उसकी प्रस्तावना को पढ़कर उपयोगी सुझाव दिए । डॉ.प्रेम सुमन जैन, जैन-विद्या एवं प्राकृत विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, डॉ. उदयचन्द जैन, जैन-विद्या एवं प्राकृत विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, श्री मानमल कुदाल,
आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर तथा डॉ. हुकमचन्द जैन, जैन-विद्या एवं प्राकृत विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के सहयोग के लिए भी आभारी हूँ।
मेरी धर्म-पत्नी श्रीमती कमलादेवी सोगाणी ने इस पुस्तक को तैयार करने में जो अनेक प्रकार से सहयोग दिया, उसके लिए
आभार प्रकट करता हूँ। ___ इस पुस्तक के द्वितीय संस्कृत को प्रकाशित करने के लिए प्राकृतभारती अकादमी, जयपुर के सचिव श्री देवेन्द्रराजजी मेहता एवं xxii ]
[ आचारांग