________________
13
यह (वनस्पति) भी बढ़ने वाली और क्षयवाली (होती है)। यह (मनुष्य) भी (अवस्था में) परिवर्तन स्वभाव (वाला) (होता है), यह (वनस्पति) भी (अवस्था में) परिवर्तन स्वभाव (वाली) होती है। (यह दुःख की बात है कि) वह (कोई मनुष्य) इस ही (वर्तमान) जीवन (की रक्षा) के लिए, प्रशंसा, आदर तथा पूजा (पाने) के लिए, (भावी) जन्म (की उधेड़-बुन) के कारण, (वर्तमान में) मरण-(भय) के कारण तथा मोक्ष (परम-शान्ति) के लिए (और) दुःखों को दूर हटाने के लिए स्वयं ही उसकाय (दो इन्द्रिय से पाँच इन्द्रियों वाले)-जीवसमूह की हिंसा करता है या दूसरों के द्वारा प्रसकाय-जीव समूह की हिंसा करवाता है या उसकाय-जीव-समूह की हिंसा करते हुए (करने वाले) दूसरों का अनुमोदन करता है। वह (हिंसा-कार्य) उस (मनुष्य) के अहित के लिए (होता है), वह (हिंसा-कार्य) उसके लिए अध्यात्महीन बने रहने का (कारण) (होता है)। (प्राणियों का वध क्यों किया जाता है ?) (उसको) मैं कहता हैकुछ मनुष्य पूजा-सत्कार के लिए (प्राणियों का) वध करते हैं, कुछ मनुष्य हरिण आदि के चमड़े के लिए (प्राणियों का) वध करते हैं, कुछ मनुप्य मांस के लिए (प्राणियों का) वध करते हैं, कुछ मनुष्य खून के लिए (प्राणियों का) वध करते हैं, कुछ मनुष्य हृदय के लिए (प्राणियों का) वध करते
हैं, इसी प्रकार पित्त के लिए, चर्वी के लिए, पांख के लिए, चयनिका ]
[ 13
14.