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स्थान में । नगरे = नगर में। वि= भी। एगदा= कभी। वासो = रहना । सुसाणे= मसारण में। सुपणगारे सूने घर में । वा= तथा ।
रुक्खमूले = पेड़ के नीचे के भाग में । वि= भी। 114 एतेहि (एत) 3/2 सवि मुणी (मुणि) 1/1 सयर्णेहि (सयण) 3/2
समणे (स-मण) 1/1 वि आसि. (अस) भू 3/1 अक पतेलस' (पतेलस) मूल शब्द 7/1 वि वासे (वास) 7/1 राइदिवं' (क्रिवित्र)= रात-दिन पि (अ) ही जयमाणे (जय) वकृ 1/1 अप्पमत्त (अप्पमत्त) 7/1 वि समाहित (समाहित) 7/1 वि झाती (झा) व 3/1 सक
114 एतेहि = इन द्वारा→इनमें । मुणी = मुनि । सयरोहि स्थानों के द्वारा
-स्थानों में । समरणे =समता युक्त मनवाले । आसि = रहे। पतेलस= तेरहवें । वासे वर्ष में । रादिवं = रातदिन । पि=ही। जयमाणे = सावधानी बरतते हुए। अप्पमत्ते-अप्रमाद-युक्त । समाहिते-एकान (अवस्था) में। झाती = ध्यान करते हैं-ध्यान करते थे। 1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग
पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 2. आसी अथवा आसि, सभी-पुरुषों और वचनों में भूतकाल में काम में
आता है। (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 749) 3. किसी भी कारक के लिए मूल शब्द (संज्ञा) काम में लाया जाता है। (मेरे विचार से यह नियम विशेषण पर भी लागू किया जा सकता है)
(पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) 4. राइंदिवं-यह नपुंसक लिंग है । (Eng. Dictionary, Monier
Williams). इससे क्रिया-विशेषण अव्यय बनाया जा सकता है। (राइंदिवं) 5. छंद की मात्रा की पूर्ति हेतु 'ति' को 'ती' किया गया है।
(पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ, 137, 138) 144 ]
[ आचारांग