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115 णिइं (णिद्द) 2/1 पि (अ) = कभी भी णो (अ) = नहीं पगामाए
(पगाम) 4/1 सेवइ (सेव) व 3/1 सक या=जा=जाव (अ)= ठीक उसी समय भगवं' (भगवन्त-भगवन्तो→भगवं) 1/1 उट्ठाए (उ?) संकृ जग्गावतीय [(जग्गावति)+ (इय)] जग्गावति (जग्गा-प्रेरक जग्गाव) व 3/1 सक इय (अ)=और अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 ईसि (अ) = थोड़ासा साईय साई (साइ) 1/1 वि य (अ)=बिल्कुल
अपडिपणे (अपडिण्ण) 1/1 वि 115 णि = नीद को । पि= कभी भी । णो-नहीं। पगामाए=आनन्द के
लिए । सेवइ = उपभोग करते हैं--उपभोग करते थे। या= ठीक उसी समय । भगवं = भगवान् । उट्ठाए खड़ा करके । जग्गावतीय = [(जगावति)+(इय)] जगा लेते हैं-जगा लेते थे। इय-और । अप्पाणं = अपने को। ईसि = थोड़ा सा। साई =सोने वाले । य=
विल्कुल । अपडिण्णे = इच्छारहित । 116 संवुज्झमाणे (संवुज्झ) वकृ 1/1 पुणरवि (अ)= फिर आसिसु (पास)
भू 3/1 अक भगवं' (भगव) 1/1 उठाए (उट्ट) संकृ णिक्खम्म (णिक्खम्म) संकृ अनि एगया (अ)= कभी कभी राशी (अ)= रात में
वहिं (अ) = बाहर चक्रमिया (चक्कम) संकृ मुहत्तागं(मुहुत्ताग) 2/1 116 संबुज्झमाणे पूर्णतः जागते हुए । पुणरवि = फिर । प्रासिसु=बैठ जाते
थे। भगवं भगवान् उछाए = सक्रिय होकर। णिक्खम्म=बाहर निकलकर। एगया = कभी-कभी। राओ= रात में। वहि = बाहर । चक्कमिया= इधर-उधर घूमकर । मुहुत्तागं = कुछ समय तक ।
1. देखें सूत्र 87 2. समय के शब्दों में द्वितीया होती है। 3. पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ, 834.
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