Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 182
________________ 125 छठेण' (छट्ठ) 3/1 एगया ()=कभी मुंजे (भुज) व 3/1 सक अदुवा (अ)=अथवा अट्ठमेण' (अट्ठम) 3/1 दसमेण! (दसम) 3/1 दुवालसमेण (दुवालसम) 3/1 एगदा (अ) कभी पेहमाणे (पह) वक 1/1 समाहि (समाहि) 2/1 अपडिण्णे (अपडिण्ण) 1/1 वि 125 छठेण = दो दिन के उपवास के वाद में। एगया=कभी । भुजे भोजन करते हैं भोजन करते थे। अदुवा=अथवा। अट्टमेण तीन दिन के उपवास के वाद में । दसमेण =चार दिन के उपवास के वाद में । दुवालसमेण =पांच दिन के उपवास के बाद में। एगदा= कभी। पेहमारणे-देखते हुए। समाहि=समाधि को। अपडिपणे निष्काम । 126 णच्चाण' (णा) संक से (त) 1/1 सवि महावीरे (महावीर) 1/1 णो (अ)= नहीं वि (अ) = भी य (अ) विल्कुल पावर्ग (पावग) 2/1 सयमकासी [(सयं) + (अकासी)] सयं (अ)=स्वयं, अकासी (अकासी) भू 3/1 सक अण्णेहि (अण्ण) 3/2 वि वि (अ)=भी ण (अ)=नहीं कारित्या (कर-कार) भू 3/1 सक कीरतं (कीरत) वक कर्म 2/1 अनि पि (अ) =भी णाणुजाणित्या [(ण) + (अणुजारिणत्या)] ण (अ) = नहीं अणुजाणित्या (अणुजाण) भू 3/1 सक 126 णच्चाण=जानकर । सेवे । महावीरे-महावीर । णो नहीं । वि= भी । य=विल्कुल । पावर्ग=पाप (को) सयमकासी [(सयं)+ (अकासी)] स्वयं, करते थे। अण्णेहि-दूसरों से। वि= भी । ण= नहीं। कारित्या=करवाते थे। कीरंतं =किए जाते हुए। पिभी । 1. कभी कभी पंचमी विभक्ति के स्थान में उतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। हिम प्राकृत व्याकरण: 3-136) यहां 'वाद में अर्थ लुप्त है, तथा 'वाद में अर्थ के योग में पंचमी होती है । 2. पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ, 830. 150 ] [ आचारांग

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