Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 189
________________ आचारांग-चयनिका के विषयों की रूपरेखा प्राचारांग की दार्शनिक पृष्ठ-भूमि और धर्म का स्वरूप (i) प्राचारांग का महत्त्व (क) व्यक्ति के उत्थान व समाज के विकास सूत्र-संख्या को समान महत्व (ii) याचारांग का प्रारम्भ : मनोवैनानिक (क) मनुप्य की सामान्य जिज्ञासा : मैं कहां 1 से पाया हूँ और कहां जाऊंगा (पूर्वजन्म और पुनर्जन्म) (ख) पूर्वजन्म का ज्ञान : (ग) शाश्वत प्रात्मा का ज्ञान (ग्रात्मवादी) 3, 95 (घ) संसार-अवस्था में शरीर और आत्मा 3 का मेल : मन-वचन और काय की क्रियाएं होती रहती है (क्रियावादी) (च) प्रिया का प्रभाव वर्तमान रहता है 3 (कर्मवादी) (छ) प्राणियों का अस्तित्व, देश-काल का 3 अस्तित्व, पुद्गल का अस्तित्व तथा गमन-स्थिति में सहायक द्रव्यों का अस्तित्व (लोकवादी) (iii) व्यक्तित्व में क्रियाएँ महत्वपूर्ण : (क) क्रियाओं का प्रयोजन 5,6 (ख) मनुष्य को क्रियाओं की सही दिशा 4 का ज्ञान नहीं चयनिका ] [ 157

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