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टिप्पण
द्रव्य-पर्याय
जो गुण और पर्यायों से संयुक्त है वही द्रव्य है । गुण और पर्याय को छोड़कर द्रव्य कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं है । द्रव्य गुणों और पर्यायों के बिना नहीं होता तथा गुण और पर्यायें द्रव्य के बिना नहीं होती। उदाहरणार्थ, स्वर्ण से पृथक् उसके पीलेपन आदि गुणों का तथा कुण्डलादि पर्यायों का अस्तित्व संभव नहीं है । अतः यह स्पष्ट है कि जो नित्य रूप से द्रव्य में पाया जाय वह गुण है तथा जो परिणमनशील है वह पर्याय है। इस तरह से पर्याय परिणमनशील होती है तथा गुण नित्य । इसके अतिरिक्त गुण वस्तु में एक साथ विद्यमान रहते हैं। किन्तु, पर्यायें क्रमशः उत्पन्न होती हैं । अतः द्रव्य गुण की अपेक्षा नित्य होता है
और पर्याय की अपेक्षा अनित्य या परिणामी होता है। इस प्रकार द्रव्य नित्यअनित्य सिद्ध होता है।
आचारांग का कथन है कि पर्याय-दृष्टि अनित्य पर दृष्टि होने के कारण नित्य से व्यक्ति को विमुख करती है, इसलिए द्रव्य-दृष्टि नाशक होने से शस्त्र है । द्रव्य-दृष्टि नित्य पर दृष्टि होने के कारण अशस्त्र कही गई है।
इस प्रकार विचारने से व्यक्ति सुख-दुःख, हर्ष-शोक, से परे आत्मा में स्थित हो जाता है। प्रात्मा
द्रव्य के छह भेद हैं: 1. जीव अथवा आत्मा, 2. पुद्गल, 3. धर्म, 4. अधर्म, 5. आकाश और 6. काल ।
सब द्रव्यों में आत्मा ही सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि केवल आत्मा को ही हितअहित, हेय-उपादय, सुख-दुःख आदि का ज्ञान होता है। अन्य द्रव्यों में इस प्रकार
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