Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 178
________________ 117 सयह' (सयरण) 3 / 2 तस्सुवसग्गा [ ( तस्स ) + ( उवसग्गा) ] तस्स (त) 4 / 1 स. उवसग्गा ( उवसग्ग) 1/2 भीमा (भीम) 1/2 वि आसी (अस) भू 3 / 2 अक अणेगरुवा (अगरूव) 1/2 वि य ( अ ) = भी. संसप्पा (संसप्पग) 1/2 वि य (प्र) = भी जे (ज) 1/2 सवि पाणा (पारण) 1/2 अदुवा (प्र) = श्रौर पक्खिणो (पक्खि ) 1/2 उवचरंति ( उवचर) व 3 / 2 सक 117 सयर्णाह = स्थानों के द्वारा स्थानों में । तस्सुवसग्गा [ ( तस्स) + ( उवसग्गा ) ] = उनके लिए, कष्ट । भोमा = भयानक । आसी = वर्तमान थे । अणेगरुवा = नानाप्रकार के । य = भी। संसप्पगा = चलने फिरने वाले । य=भी । जे= जो । पाणा = जीव । अदुवा = श्रौर। पक्खिणो= पंख-युक्त | उवचरंति = उपद्रव करते हैं → उपद्रव करते थे । 118 इहलोइयाइ' (इहलोइय) 2 / 2 वि परलोइयाइ (परलोइय) 2 / 2 वि भीमाई (भीम) 2 / 2 वि अणेगरूवाई ( श्ररणेगरूव) 2 / 2 वि अवि (घ) = और सुविभदुभिगंधाइ [ (सुब्भि) विदुब्भि) वि- (गंध) 2/2] सद्दाइ (स) 2/2 श्रणगरूवाई (प्रणेगरूव) 2 / 2 वि +3 118 इहलोइयाई = इस लोक सम्बन्धी । परलोइयाइ = पर लोक सम्बन्धी | भीमाई : = भयानक को । अणेगरूवाई नाना प्रकार के । अवि: और । सुविभदुभिगंधाई = रुचिकर और अरुचिकर गधों को में । सद्दाई शब्दों को में । 1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3 - 137) 2. 'सी' अथवा 'सि' सभी पुरुषों और वचनों में भूतकाल में काम आता है । (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण पृष्ठ 749) 3-4. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है | ( हेम प्राकृत व्याकरण: 3 - 137 ) 146 1 [ आचारांग

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199