Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 174
________________ 108 पुढवि पृथ्वीकाय को। चौर। आउफायं = जलकाय को। तेउकायं = अग्निकाय को। वायुकायं=वायुकाय को । पणगाई= शवाल को। वीयहरियाई वीज, हरी वनस्पति । च= तथा । तसकायं = त्रसकाय को । सव्वसो= पूर्णतया । गच्चा जानकारी। 109 एताई = (एत) 1/2 सवि संति(अस) व 3/2 अक पडिलेहे' (पडिलेह) व 3/1 सक चित्तमंताई (चित्तमंत) 1/2 वि से (त) 1/1 सवि अभिण्णाय (अभिण्णा) संकृ परिवज्जियारण (परिवज्ज) संकृ विहरित्या (विहर) भू 3/1 सक इति (अ)= इस प्रकार संखाए (संखा) संक महावीरे (महावीर) 1/1 109 एताई =ये । संति हैं । पडिलेहे- देखते हैं-देखा। चित्तमंताई चेतनवान् । से=उसने(उन्होंने) । अभिण्णाय-समझकर । परिवज्जियाण परित्याग करके । विहरित्या= विहार करते थे । इति-इस प्रकार। संखाए =जानकर । सेवे (वह)। महावीरे= महावीर । 110 मातणे (मातण्ण) 1/1 वि असणपाणस्स [(असण)-(पाण) 6/1] णाणुगिद्धे [(ण) + (अणुगिद्ध)] ण (अ) =नहीं अणुगिद्ध (अणुगिद्ध) 1/1 वि रसेसु (रस) 7/2 अपडिग्रणे (अपडिण्ण) 1/1 वि अच्छि (अच्छि) 2/1 पि (अ)= भी णो (अ)= नहीं पमज्जिया (पमज्ज) संकृ वि (अ)= भी य (अ)= और कंडुयए (कंडुय) व 3/1 सक मुणी (मुणि) 1/1 गातं (गात) 2/1 110 मातण्णे मात्रा को समझने वाले। असणपाणस्स= खाने-पीने की। णाणुगिद्धे [(ण)-(अणुगिद्ध)] ण= नहीं। रसेसु= रसों में। अपडिपणे = निश्चय नहीं। अच्छि = आंख को। पि= भी। णो= नहीं। 1. भूतकाल की घटनाओं का वर्णन करने में वर्तमानकाल का प्रयोग किया जा सकता है। 142 ] [ आचारांग

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