Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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वक 1/1 आघात-गट्ट-गीताई [(आघात)-(गट्ट)-(गीत) 2/2]
दंडजुदाई' [(दंड)-(जुद्ध) 2/2] मुठिजुदाई' [मुट्ठि-(जुद्ध) 2/2] 106 फरिसाई = कटु वचन । दुत्तितिक्खाई = दुस्सह । अतिप्रच्च = अवहेलना
करके । मुणी = मुनि । परक्कममाणे = पुरुषार्थ करते हुए । प्राघात-गट्टगोताई = कथा, नाच, गान को कथा, नाच, गान में। दंड-जुखाई= लाठी-युद्ध को + लाठी-युद्ध में । मुजुिदाई = मूठी-युद्ध को -
मूठी युद्ध में। 107 गढिए (गढिय) 2/2 वि मिहु (अ) = परस्पर कहासु (कहा) 7/2
समम्मि (समय) 7/1 णातसुते (णातसुत) 1/1 विसोगे (विसोग) 1/1वि अदक्खु (अदक्खु) भू प्रार्प एताइं (एत) 2/2 सवि सो (त) 1/1 सवि उरालाई (उराल) 2/2 गच्छति (गच्छ) व 3/1 सक
णायपुत्ते (णायपुत्त) 1/1 असरणाए' (असरण) 4/1 107 गढिए = पासक्त को । मिहु-कहासु = परस्पर कथानों में । समयम्मि=
इशारे में। णातसुते = ज्ञातपुत्र । विसोगे= गोक-रहित । अदक्खुदेखते थे । एताई इन । सेवे (वह)। उरालाई= मनोहर को। गच्छति = करते हैं-करते थे। णायपुत्ते- ज्ञात-पुत्र । असरणाएं =
स्मरण नहीं। 108 पुढवि (पुढवी) 2/1 च (अ) = और आउकायं (अाउकाय) 2/1
तेजकार्य (तजकाय 2/1 वायुकार्य (वायुकाय) 2/1 पणगाई (पणग) 2/2 वीयहरियाई [(वीय)-(हरिय) 2/2 वि] तसकार्य (तसकाय) 2/1 सव्वसो (अ) = पूर्णतया गच्चा (गच्चा) संकृ अनि
1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग
पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3:137) 2. मार्गभिन्न गत्यर्थक क्रियाओं के कर्म में द्वितीया या चतुर्थी विभक्ति
का प्रयोग होता है।
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