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सवि समणे (समण) 1/1 भगवं' (भगवन्त-भगवन्तो+भगवं) 1/1 उहाय (उ8) संकृ संखाए (संख) संकृ तसि (त) 7/1 स हेमंते (हेमंत) 7/1 अहुणा (अ)= इस समय पन्वइए (पन्वइअ) भूक 1/1 अनि.
रीइत्या (री) भू 3/1 सक 103 अहासुतं = जैसा कि सुना है। वदिस्सामि = कहूंगा। जहा= प्रत्यक्ष
उक्ति के प्रारम्भ करते समय प्रयुक्त । से= वे (वह) । समणे-श्रमण। भगवं भगवान् । उढाय= त्यागकर । संखाए जानकर । तसि= उस (में)। हेमंतेहेमन्त में। अहुरणा= इस समय । पन्वइए दीक्षित
हुए। रोइत्याविहार कर गए। 104 अदु (अ)= अव पोरिसिं (पोरिसी) 2/1 तिरिभित्ति' (तिरिय)
(भित्ति) 2/1] चक्खुमासज्ज [(चक्खं) + (प्रासज्ज)] चखं (चक्खु) 2/1 प्रासज्ज (अ)= रखकर या लगाकर अंतसो (अ)आन्तरिक रूप से झाति' (झा) व 3/1 सक अह (अ)= तव चपलभीतसहिया [(चक्खु)-(भीत)-(सहिय) 1/2] ते (त) 1/2 सवि हंता (अ)= यहां आनो हंता' (अ)= देखो वहवे (बहव) 2/2 वि कदिसु (कंद) भू 3/2 सक
1. अर्घ मागधी में 'वाला' अर्थ में 'मन्त' प्रत्यय जोड़ा जाता है, 'म का विकल्प से 'व' होता है । विकल्प से 'त' का लोप और 'न' का
अनुस्वार हो जाता है (अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 427) 2. काल वाचक शब्दों के योग में द्वितीया होती है। 3. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का
प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137) 4. भूतकाल की घटनाओं का वर्णन करने में वर्तमान काल का प्रयोग
किया जा सकता है। 5. भीत= डर यहाँ 'भीत' नपुंसक लिंग संज्ञा है (विभिन्न कोश देखें) 6-7. 'हंता' शब्द अव्यय है (विभिन्न कोश देखें) 8. 'कंद' का कर्म के साथ अर्थ होगा, 'पुकारना'।
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