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(उससे) (उत्पन्न) (विभिन्न प्रकार के) दुःख को समझने वाला
(हो जाता है)। 71 क्या द्रष्टा का (कोई) नाम है (या) नहीं है ? नहीं है, इस
प्रकार मैं कहता हूं। 72 कोई भी प्राणी, कोई भी जन्तु, कोई भी जीव, कोई भी
प्राणवान् मारा नहीं जाना चाहिए, शासित नहीं किया जाना चाहिए, गुलाम नहीं बनाया जाना चाहिए, सताया नहीं जाना चाहिए, (और) अशान्त नहीं किया जाना चाहिए। यह (अहिंसा) धर्म शुद्ध (है), नित्य (है), और शाश्वत (है), (यह धर्म) जीव-समूह को जानकर कुशल (व्यक्तियों)
द्वारा कथित (है)। 73 (मूल्यों का साधक) लोक द्वारा (प्रशंसित होने के लिए)
इच्छा न करें। (व्यक्तियों के लिए) मृत्यु के मुख में न आना नहीं है (अर्थात् मृत्यु के मुख में आना अवश्यम्भावी है), (फिर भी) (वे) इच्छाओं द्वारा (ही) (कार्यो में) उपस्थित (होते हैं) वे (ऐसे हैं) (जिनके) (मनरूपी) घर कुटिल (होते हैं) (यद्यपि) वे मृत्यु द्वारा पकड़े हुए (हैं), फिर भी (वे) संग्रह में आसक्त (होते हैं) । (अतः) (वे) अलग-अलग
(प्रकार के) जन्म को धारण करते हैं। 75 इस लोक में (जो) (व्यक्ति) (अहिंसा की परिधि से) बाहर
(है), (उसके) (अज्ञान को) (तू) ठीक समझ । जो कोई (अहिंसा की परिधि में है), वह समस्त (मनुष्य) लोक में बुद्धिमान है । (तू) बड़ी सावधानी से समझ (कि) जो कोई (व्यक्ति ) कर्म- (समूह) को दूर हटाते हैं, (वे) (ही) (ऐसे)
प्राणी (मनुष्य) हैं (जिनके) (द्वारा) (विभिन्न प्रकार की) चयनिका ]
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