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बहु (बहु) मूल शब्द 2/1 दुक्खं (दुवस) 2/1 लोगस्स (लोग) 6/1 जाणिता (जाण) संकृ वंता (वंता) संकृ अनि. लोगस्स' (लोग) 6/1 संजोगं (संजोग) 2/1 जंति (जा) व 3/2 सक वीरा (वीर) 1/2 वि महाजारणं (महाजाण) 2/1 परेण (क्रिवित्र) = आगे से परं' (क्रिविन) =
आगे को णावखंति [(ण)+ (अवकखंति)] ण (अ) = नहीं. अवकंखंति (अवकंख) व 3/2 सक जीवितं (जीवित) 2/1 एगं (एग) 2/1 सवि विगिचमाणे (विगिच) वकृ 1/1 पुढो (अ) = एक एक करके विगिचइ (विगिंच) व 3/1 सक सड्ढी (सड्ढि) 1/1 वि आणाए (आण) 7/1 मेधावी (मेघावि) 1/1 वि लोगं (लोग) 2/1 च (अ)= ही आणाए (प्राणा) 3/1 अभिसमेच्चा (अभिसमेच्चा) संकृ अनि. अकुतोभयं (अकुतोभय) 1/1 वि अस्थि (अ)= होता है सत्यं (सत्थ) 1/1 परेण (अ)= तेज से. परं (पर) 1/1 वि पत्थि (अ) = नहीं होता है असत्यं (असत्थ)
1/1 69 जे=जो। एगं= अनुपम को । जाणति = जानता है। से = वह । सव्वं =
सब को। सव्वतो= सव ओर से या किसी ओर से । पमत्तस्स= प्रमादी के लिए । भयं = भय । अप्पमत्तस्स-अप्रमादी के लिए। णत्यि-नहीं। एगणामे = एक (को), झुकाता है । बहुणामे = बहुत (को), झुकाता है । दुक्खं = दुःख को। लोगस्स = प्राणी-समूह के । जाणित्ता= जानकर । वंता-वाहर निकाल कर। लोगस्स = संसार का-संसार के प्रति । संजोगं ममत्व को । जति= चलते है। वीरा-वीर । महाजाणं- महा
1. कभी कभी सप्तमी के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता
है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 2. जा-जान्ति-जन्ति (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-84) 3. कर्म, करण और अधिकरण के एक वचन के 'पर' शब्द के रूप क्रिया
विशेपण की भांति प्रयोग किए जाते हैं ।
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