Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[(स)-(फल) 2/1] दट्टे (दठ्ठ) संकृ ततो (अ) इसलिए णिज्जाति'
(णी) व 3/1 सक वेदवी (वदवि) 1/1 वि ।। 79 जस्स = जिसके । एत्यि = विद्यमान नहीं। पुरे पूर्व में । पच्छा = बाद
में। मज्झ= मध्य में। तस्स = उसके । फुओ= कहाँ से ? सिया= हो-होगी। से= वह । हुम्ही । पन्नाणमंते-प्रज्ञावान् । बुद्ध = बुद्ध । आरंभोवरए (प्रारंभ)+(उवरए)] हिंसा से, विरक्त । सम्ममेतं [(सम्म+ (एतं)] =सत्य, यह । जेण= जिसके कारण । बंधं-कर्म-बंधन को । वह = हत्या को-हत्या में । घोरं घोर (को)। परितावं-दुःख को। चौर । पलिछिदिय-हटा कर । वाहिरगंवाहर की ओर । च= ही। सोतं = ज्ञानेन्द्रिय-समूह को । णिक्कम्मदंसी-निष्कर्म को अनुभव करने वाला । इह = यहाँ । मच्चिएहिमनुष्यों में से । कम्मुणा= कर्म के साथ । सफलं फल को। द देखकर । ततो इसलिए । पिज्जाति = दूर ले जाता है । वेदवी=समझदार । 80 जे (ज) 1/2 सवि खलु (अ)= निश्चय ही भो= अरे ! वीरा (वीर)
1/2 समिता (समित) 1/2 वि सहिता (सहित) 1/2 वि सदा (अ)= सदा जता (जत) भूकृ 1/2 अनि संथडदसिणो [(संथड)-(दंसि) 1/2 वि पातोवरता [(प्रात)+ (उवरता)] अहातहा (अ) = उचित प्रकार से लोगं (लोग) 2/1 उवेहमाणा (उवेह) वकृ 1/2 पाईणं (पाईणा) 2/1 पडीणं (पडीणा) 2/1 दाहिणं (दाहिणा) 2/1 उदीणं (उदीणा) 2/1 इति = अत : सच्चंसि (सच्च) 7/1 परिविचिट्ठिसु
(परिविचिट्ठ) भू 3/2 आर्ष 80 जेजो । खलु निश्चय ही । भो=अरे ! वीरा-वीर । समिता
रागादिरहित । सहिता= हितकारी । सदा सदा । जता-जितेन्द्रिय । संथडदंसिणो= गहरी अनुभूतिवाले । पातोवरता शरीर से विरत ।
1. हेम प्राकृत व्याकरण : 3-158
चयनिका ].
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