Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 152
________________ पथ को — महापथ पर । परेण = आगे से । परं = आगे को । जंति = चलते - जाते हैं। णावकंति [ (ण) + (श्रवकंखंति ) ] = नहीं, चाहते हैं । जीवितं जीवन को । एगं = केवल मात्र को । विगिचमाणे = दूर हटाता हुया । पुढो = एक एक करके । विगिचइ = दूर हटा देता है । सड्ढी = श्रद्धा रखने वाला । आणाए = श्राज्ञा में । मेधावी = शुद्धबुद्धि वाला । लोगं = प्रारणी-समूह को । चही । आणाए = श्राज्ञा से । अभिसमेच्चा = जानकर | अकुतोभयं = निर्मय । अत्थि = होता है । सत्यं = शस्त्र । परेण = तेज से । परं = तेज । णत्थि = नहीं होता है । असत्यं = शस्त्र । (त) 1 / 1 ( ( माय ) - पेज्जदंसी 1 / 1 वि | से | मायदंसी 1 / 1 वि] 70 जे (ज) 1 / 1 सवि कोहदंसी ( ( कोह) - ( दंसि ) सव | माणदंसी [ ( माण ) - ( दंसि ) 1 / 1 वि ] ( दंसि ) 1 / 1 वि) लोभदंसी [ (लोभ) - ( दंसि ) [ ( पेज्ज) - ( दंसि ) 1 / 1 वि] दोसदंसी [ ( दोस ) - ( दंसि ) 1 / 1 वि] मोहदंसी [ ( मोह) - ( दंसि ) 1 / 1 वि] दुक्खदंसी [ ( दुक्ख ) - ( दंसि ) 1/1 fa] 70 जे = जो । कोहदंसी = क्रोध को समझने वाला । से = वह | माणदंसी = अहंकार को समझने वाला । मायदंसी = मायाचार को समझने वाला । लोभदंसी = लोभ को समझने वाला । पेज्जदंसी = राग को समझने वाला | दोसदंसी = द्वेष को समझने वाला । मोहदंसी = आसक्ति को समझने वाला । दुक्खदसी = दुःख को समझने वाला । 71 किमत्थि [ ( किं) + (श्रत्थि ) किं (अ) = क्या. अत्थि (अ) = है उवधी ण ( अ ) = नहीं विज्जति ( विज्ज) (अ ) = इस प्रकार बेमि (बू) व ( उवधि) 1 / 1 पासगस्स ( पासग) 6 / 1 व 3 / 1 अक णत्थि (अ ) = नहीं है त्ति 1 / 1 सक. । 71 किमत्थि [ ( किं) - ( प्रत्थि ) ] क्या ?, है द्रष्टा का । ण = नहीं । विज्जति = है । प्रकार | बेमि = कहता हूँ । 120 ] उवधी = नाम । पासगस्स = = नहीं है । त्ति = इस णत्थि : 1= [ आचारांग

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