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• 96 (पाश्चर्य ! ) कुछ लोग (समतादर्शी को) अनाज्ञा में (भी)
तत्परता सहित (होते हैं), कुछ लोग (समतादर्शी की) आज्ञा में (भी) आलसी (होते हैं)। यह तुम्हारे लिए न होवे । (आत्मानुभव की सर्वोच्च अवस्था का वर्णन करने में) सब शब्द लौट आते हैं (तथा) जिसके (प्रात्मानुभव के) विपय में (कोई) तर्क (कार्यकारी) नहीं होता है। बुद्धि उसके विषय में (कुछ भी) पकड़ने वाली नहीं होती है)। (वह) (अवस्था) आभा-(मयी) (होती है), (वह) किसी ठिकाने पर नहीं (होती है), (वह) (केवल) ज्ञाता-द्रष्टा (अवस्था) (होती है)। (वह) (अवस्था) न बड़ी (है), न छोटी (है), न गोल (है), न त्रिकोण (है) न चतुष्कोण (है) और न परिमण्डल (है)। (वह) न काली (है), न नीली (है), न लाल (है), न पीली (है), (और) न सफेद (है)। (वह) न सुगन्धमयी (है) (और) न दुर्गन्धमयी (है)। (वह) न तीखी (है), न कडवी (है), न कषैली (है), न खट्टी (है), (और) न मीठी (है)। (वह) न कठोर (है), न कोमल (है), न भारी (है), न हलकी (है), न ठण्डी (है), न गर्म (है), न चिकनी (है) (और) न रूखी (है)। (वह) न लेश्यावान् (है), (वह) न उत्पन्न होने वाली (है), (उसके) (वहां) (कोई) आसक्ति नहीं (है)। (वह) न स्त्री (है), न पुरुष और न इसके विपरीत (न नपुंसक)। (वह) (शुद्ध आत्मा) ज्ञाता (है), अमूच्छित (होश में आया
हुआ) (है)। चयनिका ]
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