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(अकाल)-(समुट्ठायि) 1/1 वि] संजोगट्ठी [(संजोग) + (अट्ठी)]
(संजोग)-(अट्टि) 1/1 वि] अट्ठा लोभी [(अट्ठ-अट्ठ)-(लोभि) 1/1 वि आनुपे (पालुप) 1/1 वि सहसपकारे (सहसक्कार) 1/1 वि विरिणविट्ठचित्ते (विरिणविट्ठचित्त) 1/1 वि एत्य (अ) यहां पर सत्ये
(सत्य) 2/2 पुणो पुणो (अ) = बार-बार 26. जे = जो । गुरो= इन्द्रियासक्ति । से = वह । मूलढाणे= आधार । इति=
इस प्रकार । से= वह । गुणट्ठी= इन्द्रिय-विषयाभिलाषी । महता= महान् (से)। परितावेण= दुःख से । वसेवास करता है । पमते-प्रमादमें। अहो य राम्रोदिन में तथा रात में । य= भी। परितप्पमाणे = दुःखी होता हुआ । कालाकाल समुट्ठायी [(काल)+ (अकाल) + (समुट्ठायी)] काल (में), अकाल (में)प्रयल करनेवाला । संजोगट्ठी [(संजोग) + (अट्ठी)]
= संबंध का, अभिलापी। अट्ठालोमी= धन का लालची। पालुपे ठगनेवाला । सहसपकारे विना विचार किए करने वाला। विरिणविद्वचित्ते = आसक्त चित्तवाला । एत्य =यहाँ पर । सत्ये = शस्त्रों को । पुणो
पुणो बार-बार । 27. अभिपंतं (अभिकंत) भूक 2/1 अनि च (अ) = ही खलु(अ) = वास्तव
में वयं (वय) 2/1 सपेहाए' = संपेहाए (सपेह) संकृ ततो (अ) = बाद में से (त) 6/1 स एगया (अ)= एक समय मूढभावं [(मूढ) वि(भाव) 2/1] जयंति (जयंति) प्रे. 3/2 सक अनि जेहिं (ज) 3/2 स वा (अ)= और सद्धि' (अ) के साथ में संवसति (संवस) व 3/1 अक ते (त) 1/2 सवि व (अ)=ही रणं (त) 2/1 स एगदा (अ) = एक समय रिणयगा (रिणयग) 1/2 वि पुचि (अ)= पहले परिवदंति 1. समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर परस्पर में ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ और
दीर्घ के स्थान पर हस्व हो जाते हैं। (हेम प्राकृत व्याकरण: 1-4) 2. स= सं (सपेहाए = संपेहाए)।
3. सद्धि के योग में तृतीया विभक्ति होती है । चयनिका ]
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