Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 124
________________ पफरेंति' (पकर) व 3/2 सक संगं (संग) 2/1 से (त) 1/1 सवि वसुमं (वसुमन्त- वसुमं) 1/2 वि सव्वसमग्णागतपण्णाऐणं (सव्व) वि-(समण्णागत) वि-(पण्णाण)3/1] अप्पारणेणं (अप्पारण)3/1 अकरणिज्जं (अ-कर) विधि 3 2/1 पांव (पाव) 2/11 फम्म (कम्म) 2/1 णो (अ) = नहीं। अण्णेसि (अण्णेसि) 1/1 वि । 25. एत्यं = यहाँ । पि = यद्यपि । जाण =जानो उवादीयमाणा [(उव) + (आदीयमाणा)] =निकट, समझते हुए। जे= जो । प्रायारे प्राचार में । ए नहीं। रमंति = ठहरते हैं। प्रारंभमाणा-हिंसा करते हुए। विणयं = आचार को। वयंति = कथन करते हैं । छंदोवणीया [(छंद) (उवरणीया)]-स्वच्छन्दता, प्राप्त की गई। अज्झोववपणा [(अज्झ)+ (उव) + (वण्णा)] अत्यन्त. दोप (में), वे हुए । प्रारंभसता= हिंसा में, पासक्त । पकरेंति = उत्पन्न करते हैं । संगं= कर्म-बन्धन को। से = वह । वसुमं = अनासक्त । सव्वसमण्णागतपण्णारगणं पूरी तरह से, समता को प्राप्त, प्रज्ञा के द्वारा। अप्पागणं =निज के द्वारा । अफरणिज्जं = अकरणीय । पावं = हिंसक को । कम्मं = कर्म को। णो= नहीं। अण्णेसि = खोज करने वाला। 26. जे (ज) 1/1 सवि गुणे (गुण) 1/1 से (त) 1/1 सवि मूलढारणे (मूलट्ठाण) 1/1 इति (अ) = इस प्रकार से (त) 1/1 सवि गुणट्ठी (गुणट्ठि) 1/1 वि महता (महता) 3/1 वि अनि परितावेण (परिताव) 3/1 वसे (वस) व 3/1 सक पमत्ते (पमत्त)7/1 अहो य राम्रो (अ) =दिन में और रात में य= भी परितप्पमाणे (परितप्प] वकृ 1/1 कालाकालसमुट्ठायी [(काल) + (अकाल) + (समुट्ठायी)] [(काल) 1. प्राकृत मार्गोपदेशिका : पृ. 141 या है. प्रा. व्या. 3-158 । 2. अभिनव प्राकृत व्याकरणः पु. 427 । 3. 'वास करना' अर्थ प्रायः अधिकरण के साथ होता है। 92 ] [ चयनिका

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