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23. णिज्झाइत्ता (रिणज्झा) संकृ पडिलेहित्ता (पडिलेह) संकृ पत्तेयं (अ)
प्रत्येक परिणिन्वाणं (परिणिव्वाण) 2/1 सवेसि (सव्व) 4/2 सवि पाणाणं (पाण) 4/2 भूताणं (भूत) 4/2 जीवाणं (जीव) 4/2 सत्ताणं (सत्त) 4/2 अस्सातं (अस्सात) 1/1 अपरिणिन्वाणं (अपरिसिव्वाण) 1/1 महन्भयं (महन्भय) 1/1 वि दुक्खं (दुक्ख) 1/1 वि ति (अ) = इस प्रकार । वेमि (बू) व 1/1 सक तसंति (तस) व 3/1 अक पाणा (पाण) 1/2 पदिसों' (पदिसो) 2/2 अनि दिसासु (दिसा) 7/2 य (अ) =तथा तत्य तत्य (अ) प्रत्येक स्थान पर पुढो (अ) = अलग-अलग पास (पास) विधि 2/1 सक । आतुरा (आतुर) 1/2 वि । परितार्वेति (परिता) व प्रेरक 3/2 सक संति (अस) व 3/2 अक पाणा (पाण) 1/2 पुढो
(अ) =अलग-अलग सिता=सिया (अ)= भी (अवधारण अर्थ में)। 23. णिज्झाइत्ता विचार करके । पडिलेहिता-देख करके । पत्तेयं =
प्रत्येक । परिणिन्वाणं = शान्ति को । सव्वेसि = सव (के लिए)। पाणाणं
=प्राणियों के लिए । भूताणं = जन्तुओं के लिए। जीवाणं-जीवों के लिए । सत्ताणं-चेतनवानों के लिए। अस्सातंपीड़ा। अपरिणिन्वाणं
1. बहुधा विशेपणात्मक बल के साथ प्रयुक्त होता है। स्त्री
प्राकृतीकरण 2. प्रदिश् -+ प्रदिशः (द्वितीया बहुवचन)-पदिसो (Everywhere (प्रत्येक स्थान पर) Monier Williams : Sans-Eng. Dictionery P. 679] कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। हम प्राकृत व्याकरणः 3-137)
प्रेरक 3. तव-→ तावे (प्राकृत मार्गोपदेशिका पृष्ठ, 320) 90 ]
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