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के प्रयोजन के लिए । कूराई कम्माई - क्रूर कर्मों को । बाले = अनानी । पकुव्वमाणे = करता हृया । तेण- उनके द्वारा । दुक्रोण == दुःख में। मुढे = व्याकुल हुआ । विपरियसमुवेति (विप्परियानं उर्वति) = विपरीतता को प्राप्त होता है। मुणिणाजानी के द्वारा। हुम्ही । एतं = यह 1 पवेदितं = कहा गया है। अणोहतरा=पार जाने में असमर्थ । एते == ये । णो= नहीं । य= विल्कुल । ओहं = संसाररूपी प्रवाह को →संसाररूपी प्रवाह में । तरित्तए
-तैरने के लिए। अतीरंगमा तीर पर जाने वाले नहीं। तीरं तीर पर । गमित्तए जाने के लिए। अपारंगमापार जाने वाले नहीं। पारंपार (को) । गमित्तए = जाने के लिए। आयाणिज्जं = ग्रहण किए जाने योग्य को। च-ही। आदाय - ग्रहण करके। तम्मि-उस (पर)। ठाणे स्थान पर । ण = नहीं । चिट्ठति = ठहरता है । वितहं =
असत्य को । पप्प प्राप्त करके । खेतणे-धूर्त । ठाणम्मि-स्थान पर। 38 उद्देसो (उद्देस) 1/1 पासगस्स (पासग) 4/1 वि त्यि (अ) = नहीं
वाले (वाल) 1/1 वि पुण (अ) = और णिहे (गिह) 1/1 वि कामसमणुण्णे [(काम)-(समणुण्ण) 1/1 वि] असमितदुक्से [(असमित) भूक अनि-(दुक्ख) 7/1] दुक्खी (दुखि) 1/1 वि दुक्खाणमेव [(दुक्खाणं) (एव)] दुक्खाणं (दुक्ख) 6/2. एव (अ)= ही भाव (आव) 2/1 अणुपरियति (अणुपरियट्ट) व 3/1 अक त्ति (अ)=
इस प्रकार वेमि (ब) व 1/1 सक 38. उद्देसो उपदेश । पासगस्त =द्रप्टा के लिए । त्यि = नहीं है ।
वाले = अज्ञानी । पुण=और । णिहे-यासक्ति युक्त । कामसमणुण्णे = भोगो 1. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग
होता है । (हम प्राकृत व्याकरण : 3-135) 2. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग
होता है। हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 102 ]
[ प्राचारांग