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कुसले (कुसल) 1/1 वि पुण (अ) और गो (अ) नहीं बद्ध (बद्ध) भूकृ 1/1 अनि मुफ्के (मुक्क) भूकृ 1/1 अनि से (त) 1/1 सवि जं (ज) 2/1 सच (अ)= भी आरमे (प्रारम) व 3/1 सक च (अ)-विल्कुल गारने [(ण)+(आरभे)] ण (अ)नहीं. प्रारभे (आरभ) व 3/1 सक अणारखं (अणारद्ध) 2/1 वि च (अ)=
विल्कुल ण (अ)नहीं आरने (प्रारम) विधि 3/1 सक 50 से वह । मेघावी मेघावी । जे जो। अगुग्यातणस्स आपात रहितता
का। खेतणे-जानने वाला। य= भी। बंधपमोक्खमणेसी (बं+ पमोक्खं+अण्णेसी)-बन्धन (कर्म से) छुटकारे को- (कर्म से) छुटकारे के विषय में, खोज करने वाला। कुसले-कुशल । पुण= और । गो= नहीं । बद्ध =वंवा हुा । मुक्के= मुक्त किया गया। से वह । ज=जिस को। च= भी । आरने = करता है। च= विल्कुल णारने = (ण+आरभे)=नहीं करता है । अणारद्ध = नहीं किए हुए को।
च = विल्कुल । ण=न । आरने = करे । 51 सुत्ता (सुत्त) भूक 1/2 अनि अमुणी (अमुणि) 1/2 वि मुणिणो (मुणि)
1/2 सया (अं) =सदा जागरंति (जागर) व 3/2 अक 51 सुत्ता सोए हुए । अमुणी = अज्ञानी । मुणिणो-ज्ञानी । सया= सदा ।
जागरंति= जागते हैं। 52 जस्सिमे [(जस्स)+(इमे)] जस्स (ज) 6/1 इमे (इम) 1/2 सवि सद्दा
(सइ) 1/2 य (अ)=और रूवा (रुव) 1/2 गंधा (गंव) 1/2 रसा (रस) 1/2 फासा(फास)1/2 अभि समण्णागता (अभिसमण्णागत) 1/2
1. कभी कभी षष्ठी का प्रयोग तृतीया के स्थान पर होता है (हम प्राकृत
व्याकरण : 3-134) 108 ]
[ आचारांग
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