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उवरतो=मुक्त । पावकम्मेहि = पाप कर्मों द्वारा-पाप कर्मों से । वीरे = वीर । आतगुत्ते = आत्मरक्षित । सेयण्णे = जानने वाला । जे= जो । पज्जवजातसत्यस्स=पर्यायों से उत्पन्न शस्त्र का। खेतणे =जानने वाला।
से =वह । असत्यस्स-प्रशस्त्र का । सेतण्णे = जानने वाला। 55 अकम्मरस (अकम्म) 4/1 वि ववहारो (ववहार) 1/1 ण (अ) =नहीं
विज्जति (विज्ज) व 3/1 अक। कम्मुणा (कम्म) 3/1 उवाधि (उवाधि) मूल शब्द 1/1 जायति (जाय)
व 3/1 अक 55 अकम्मस्स= कर्मों से रहित के लिए। ववहारो= सामान्य लोक प्रचलित
आचरण । ण= नहीं । विज्जति =होता है। कम्मुणा= कर्मो से ।
उवाघि = उपाधि । जायति = उत्पन्न होती है। 56 कम्मं (कम्म) 2/1 च (अ) ही पडिलेहाए (पडिलेह) संकृ कम्ममूलं
[(कम्म)-(मूल) 1/1] च (अ)=तथा जं (ज) 1/1 सवि छणं (छण) 1/1 पडिलेहिय (पडिलेह) संकृ सव्वं (सव्व) 2/1 वि समायाय (समाया) संकृ दोहि (दो) 3/2 वि अंतेहि (अंत) 3/2 अदिस्समाणे (अदिस्समाणे)
वकृ कर्म 1/1 अनि 56 कम्म-कर्म को । च =ही । पडिलेहाए = देखकर । कम्ममूलं = कर्म का
आधार। च = तथा । जं=जो। छणं = हिंसा। पडिलेहिय = देखकर। सव्वं = पूर्ण को । समायाय =ग्रहण करके । दोहि = दोनों के द्वारा ।
अंतेहि = अंतों के द्वारा । अदिस्समाणे = नहीं कहा जाता हुआ। 57 अग्गं (अग्ग) 2/1 च' (अ) = और मूलं (मूल) 2/1 विगिंच (विगिंच)
विधि 2/1 सक घोरे (धीर) 8/1 पलिछिदियाणं (पलिछिंद) संकृ णिक्कम्मदंसी [णिक्कम्म) वि-(दंसि) 1/1 वि]
1. कभी कभी और अर्थ को प्रकट करने के लिए 'च' का दो बार प्रयोग किया जाता है।
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